साठ साल पूरे करने पर

आसान नहीं है सब कुछ
कहानी-किस्‍से गढ़ लेने की तरह।
घुटनों के बल चलकर
खड़े होने की कोशिशों
और साठ वसंतों को
पूरे कर लेने के बीच की दूरी को
नहीं नापा जा सकता किसी फीते से।
पिता की पीठ पर पैर रखकर
कंधों पर सवारी करने के सुख
और नुकीली चट्टानों को
लांघते हुए लहूलुहान पैरों से
शिखरों पर पताकाएं फहराने के गर्व
के बीच के फ़र्क को
व्‍यक्‍त नहीं किया जा सकता
रूमानी कविताओं में।
बड़ी कठिन कवायद है –
पतझड़ का शिकार बने
सूखे पत्‍तों पर चलना
और यह ध्‍यान भी रखना कि
धीमे-से भी कोई आवाज़ न हो।
आसान कुछ भी नहीं है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *