श्रवण गर्ग के भास्कर छोड़ने की खबर चौंकाने वाली है भास्कर के साथ श्रवण गर्ग का लंबा रिश्ता रहा है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि भास्कर आज जिस मुकाम पर पहुंचा है उसके हमकदम के रूप श्रवण गर्ग भी रहे हैं । नब्बे के दशक से श्रवण गर्ग ने भास्कर का दामन थामा और उसके बाद तो न तो भास्कर को फुर्सत मिली और ना श्रवण गर्ग को, दोनों ही तेज रफ्तार से आगे चलते गए । भास्कर एक साम्राज्य की तरह फैलता गया और श्रवण गर्ग भी उसके मुकाबले लगातार मजबूत होते गए । संभवत: भास्कर के साथ श्रवण गर्ग ने सबसे लंबी पारी खेली यहां उन्होंने अपनी पत्रकारिता को नया आयाम भी दिया और उनकी पहचान नेशनल लेबल के पत्रकार के रूप में उभरी । भास्कर से उनका जाना संभवत: इस कारण से भी होसकता है कि भास्कर अब अपनी संपादकीय टीम की कमान किसी युवा को सौंपना चाहता है । भास्कर ने वैसे भी नीति बना रखी है कि 60 पार के बाद व्यक्ति को संस्थान से विदा कर दो । कई बार यह विदाई ससम्मान होती है और कई बार…………..खैर श्रवण जी को बधाई उन्होंने भास्कर में लंबी पारी खेली ।
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