[dc]प्र[/dc]धानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के अवतार को लेकर कांग्रेस से ज्यादा भारतीय जनता पार्टी के नेता डरे हुए हैं। ‘पितृ-पुरुष’ आडवाणी, सुषमा स्वराज और डॉ. मुरली मनोहर जोशी को मना पाने में राजनाथ सिंह को पसीना आ रहा है। पसीने की बूंदें उनके माथे पर पहुंचकर वैसे भी कुछ ज्यादा ही चमकने लगती हैं। राजनाथ सिंह को डर हो सकता है कि मोदी के नाम पर एनडीए तो टूट ही चुका है और अब पार्टी भी दो फाड़ हो सकती है। विधानसभा चुनावों की पूर्व संध्या पर मचने वाली इस अफरा-तफरी में कौन किधर का रुख करेगा पता भी नहीं चलेगा। मोदी की उम्मीदवारी का कुछ लोग खुले तौर पर और कुछ चोरी-छुपे विरोध कर रहे हैं। कुछ इधर या उधर लुढ़कने के लिए मुंढेरें तलाश रहे हैं। बिहार के तेज-तर्रार नेता सुशील कुमार मोदी हाल तक ‘पितृ-पुरुष’ के साथ थे, अब आरोप लगा रहे हैं कि नरेंद्र मोदी का विरोध करने वालों को देश के मूड का पता नहीं है। आडवाणी सहित प्रधानमंत्री पद की धारावाहिक आकांक्षाएं लेकर जनता की नि:स्वार्थ सेवा में लगे मोदी-विरोधी नेताओं का डर जायज है। अगर मोदी अपने निजी ख्वाब को लोकसभा चुनावों में पार्टी के लिए हकीकत में बदलने में कामयाब नहीं हुए तो भारतीय जनता पार्टी का हश्र क्या होगा? और यह कि तमाम विरोधों और अंदरूनी तोड़फोड़ के बावजूद मोदी अगर असली लाल किले पर भी चढ़ने में कामयाब हो गए तो उनका विरोध करने वाले इन नेताओं का क्या हश्र होगा? पार्टी के भीतर और बाहर के अपने विरोधियों को नरेंद्र मोदी किस तरह फटे हालात में कर देते हैं इसका गुजरात से पता किया जा सकता है। पर भाजपा में जो कुछ भी हो रहा है वह इसलिए स्वाभाविक है कि पार्टी अंतत: कांग्रेसीकरण को प्राप्त कर रही है। इंदिरा गांधी के नेतृत्व को लेकर कांग्रेस में मोरारजी और निजलिंगप्पा टाइप नेताओं ने इसी तरह से चुनौती दी थी। उस जमाने में तारकेश्वरी सिन्हा का भी बड़ा नाम था। इंदिराजी ने अपने खिलाफ उठे विरोध को किस तरह जमींदोज किया, सबको पता है। कांग्रेसी जमात निश्चित ही पसंद नहीं करेगी कि इंदिराजी के गुणों की तुलना नरेंद्र मोदी से की जाए।
[dc]मो[/dc]हनराव भागवत ने गुजरात के मुख्यमंत्री के नाम पर संघ की प्रतिष्ठा को कुछ आगा-पीछा सोचकर ही दांव पर लगाया होगा जिसमें यह भी शामिल होगा कि जिन्हें पैदल साथ नहीं चलना हो वे अपने रथों पर बैठे रहें। इसका अर्थ यह है कि ‘सेना’ को ‘पुलिस’ के काम में जोत दिया जाएगा। संघ ही फिर भारतीय जनता पार्टी भी बन जाएगा। सुशील मोदी एक सवाल के जवाब में उगल भी गए कि नरेंद्र मोदी के अलावा पार्टी के पास कोई विकल्प भी नहीं था। संघ का भी यही मानना है कि भाजपा में प्रधानमंत्री पद के लिए इतने ज्यादा उम्मीदवार हैं कि नरेंद्र मोदी जैसे एक नेता के जरिए ही बाकी सबसे ‘सूर्य नमस्कार’ करवाया जा सकता है। शिवराज सिंह चौहान सहित दूसरे नेता अगर मोदी के नाम की घोषणा को विधानसभा चुनावों तक के लिए टालना चाहते हैं तो इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि अगर भाजपा मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और दिल्ली में उम्मीदों से कम चमत्कार दिखा पाई तो फिर पार्टी और मोदी का लोकसभा चुनावों में क्या बनेगा? और दूसरा कारण यह कि अगर उम्मीद से ज्यादा चमत्कार हो गया तो फिर सारे डंके मोदी के नाम के ही बजेंगे। सबका डर यह है कि मोदी जब टॉप पर होते हैं तो सन्नाटा बॉटम तक पसरा रहता है। मोदी की उम्मीदवारी तो तय है। मोहनराव भागवत इसके लिए अपना बेल्ट कसकर मैदान में जमे हुए हैं। देखना केवल यह है कि ‘केजुअल्टी’ कितनी होती है और विरोध की आग कितने इलाके को प्रभावित करती है। मोदी की उम्मीदवारी की घोषणा का अर्थ यही होगा कि पार्टी में दूसरे सभी प्रत्याशियों के दिन अंतिम रूप से लद गए हैं। मोदी के नाम की घोषणा के बाद क्या सुषमा स्वराज लोकसभा में विपक्ष की नेता बने रहना चाहेंगी?