कांग्रेस के नेता छतों पर चढ़कर चिल्ला रहे थे कि ममता बनर्जी अगर अपना समर्थन वापस ले लेती हैं, तब भी मनमोहन सरकार को कोई खतरा नहीं है। ममता ने अपना समर्थन वापस लेकर दिखा दिया। अब बारी कांग्रेस के मैनेजरों की है कि वे सरकार को संकट से कैसे बाहर निकालते हैं।
देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे पिछले दिनों ही ठहाका मारकर मजाक उड़ा रहे थे कि लोग जैसे बोफोर्स कांड को भूल गए थे, वैसे ही कोयला कांड को भी भूल जाएंगे। ममता बनर्जी ने शिंदे को भी देश की ओर से जवाब दे दिया। चूंकि सरकार देश पर राज करने का नैतिक साहस लगातार खोती जा रही है, वह अब सटोरियों की तरह गिनती को अपने पक्ष में करके अल्पमत में आ जाने के बावजूद सत्ता में बने रहने की कोशिश करेगी। नरसिंह राव सरकार ने भी किसी समय ऐसा ही किया था। कांग्रेस को स्वयं की ताकत के बजाए विपक्ष की कमजोरियों पर ही हमेशा ज्यादा भरोसा रहता आया है। वैसे उसने अभी अपने सभी हथियारों का इस्तेमाल भी नहीं किया है। कांग्रेस को यकीन है कि मायावती और समाजवादी पार्टी में गिरती हुई सरकारों को बचा ले जाने की अद्भुत क्षमता है। अतीत में ऐसा हो भी चुका है। राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनावों का अनुभव भी ज्यादा पुराना नहीं है, जब मुलायम सिंह ने ममता को अधर में छोड़ दिया था। पर इस समय मामला निश्चित ही ज्यादा गंभीर है। कांग्रेस का साथ देना सपा और बसपा को राजनीतिक रूप से महंगा पड़ सकता है और चुनावों में उसकी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है। इस लिहाज से देखा जाए तो ममता बनर्जी इन नेताओं पर भारी पड़ गई हैं। कांग्रेस अभी तक यही मानती आ रही थी कि ममता केवल “भेड़िया आया” की तरह धमकियां ही देती रहती हैं। ममता ने अब भेड़िये को कांग्रेस के सामने पेश करके भी दिखा दिया है। देश के राजनीतिक हालात ठीक वैसे ही बन रहे हैं जैसे कि वर्ष १९७५ में आपातकाल के वक्त थे। इस बार फर्क केवल इतना है कि सरकार देश में अघोषित आर्थिक आपातकाल लागू करना चाह रही है और इसके लिए वह किसी भी सीमा तक जाने को तैयार है। मतलब यह कि चुनावों में हारने की तैयारी के साथ वह सत्ता में बने रहने की रणनीति को अंजाम देना चाहती है।
कारण स्पष्ट है कि उसे अपनी अलोकप्रियता के मुकाबले ज्यादा भरोसा विपक्षी पार्टियों के बीच नेतृत्व को लेकर व्याप्त अराजकता पर है। कांग्रेस के संकट मोचक अब ममता को मनाने की कोशिशें भी करेंगे और माया-मुलायम-करुणानिधि के पास भी समझौतों के लिफाफे रवाना करेंगे। निश्चित ही जब तक संसद का सत्र आयोजित नहीं होता, सारे लिफाफे बंद ही रहने वाले हैं। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम घोषणा कर चुके हैं कि सरकार अपने किसी भी फैसले से पीछे नहीं हटेगी। अगर ऐसा होता ही है तो इस बात में शक है कि शिंदे का झूठ सच में तब्दील हो सकेगा। देश को पता है कि विपक्ष के पास अगर नेतृत्व के लिए अटल बिहारी वाजपेयी नहीं हैं तो कांग्रेस के पास भी कोई इंदिरा गांधी नहीं हैं।