भ्रष्टाचार का सीधा प्रसारण

[dc]यू[/dc]पीए सरकार अब भाजपा अध्यक्ष से जुड़ी कंपनियों पर लगे आरोपों की जांच करवाने वाली है। सत्ता में होने का इतना सुख तो उसे मिलना ही चाहिए कि वह जांच के लिए राजनीतिक शिकारों का चुनाव मर्जी और सुविधा के अनुसार कर सके। लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में चुनावों से पहले प्रतिद्वंद्वियों से इसी तरह निपटा जाता है। ताजा विवाद पर चर्चा करें तो देश की जनता की नितिन गडकरी के प्रति कोई उल्लेखनीय सहानुभूति नहीं है। कभी रही भी नहीं। सही पूछा जाए तो आज की तारीख में राजनीति में कोई ऐसा नेता बचा भी नहीं है, जिसके प्रति लोगों के मन में कोई सहानुभूति उपजे। जिस तरह से भ्रष्टाचार के कंकाल एक-एक कर देश की दोनों प्रमुख पार्टियों की अलमारियों से बरामद हो रहे हैं और उनकी सड़ांध सड़कों पर फैल रही है, वैसे-वैसे जय-जयकारों के अहंकार में डूबे रहने वाले राजनीति के नायक दया के पात्र बनकर सामने आ रहे हैं और जो सिद्ध हो रहा है, वह यही कि हमाम में सब नंगे हैं।
[dc]नि[/dc]तिन गडकरी की कंपनियों पर लगे आरोपों की जांच करवाई जाना इसलिए भी जरूरी है कि जनता सरकार से यह मांग भी पुरजोर तरीके से कर सके कि जो आरोप देश के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी के खिलाफ लगे हैं, उनकी भी जांच की घोषणा सरकार को करना चाहिए। सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली में करोड़ों रुपए की जमीन के सौदों को लेकर जो आरोप लगे हैं, उनकी भी जांच का कोई संकेत मिलना चाहिए। हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के दावेदार और पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरभद्र सिंह पर लगे हर आरोप की भी जांच की जनता मांग करना चाहेगी कि उनकी आय केवल एक वर्ष में ही तीस गुना कैसे बढ़ गई।
[dc]नि[/dc]श्चित ही सरकार किसी भी मामले में न तो जांच की घोषणा करेगी और न ही कभी कोई पड़ताल होगी। यूपीए सरकार से जुड़े किसी भी व्यक्ति के खिलाफ जब भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं तो समूची कांग्रेस उसके बचाव में सामने आ जाती है। पार्टी या तो गठबंधन की मजबूरी बताकर बरी होने की कोशिश करती है या आरोपों को विपक्ष का षड्यंत्र बताकर दफन करना चाहती है।
[dc]हा[/dc]ल के दिनों में उजागर हुए सभी मामलों में कांग्रेस का यही चेहरा प्रकट हुआ है। ऐसा ही अब नितिन गडकरी के मामले में भारतीय जनता पार्टी के नेता कर रहे हैं। लालकृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली और सुषमा स्वराज द्वारा दिए गए बयान भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पार्टी के दोहरे मानदंडों और राजनीतिक पाखंड को ही व्यक्त करते हैं। कांग्रेस के मामले में जहां एक सौ सत्ताइस साल पुरानी पार्टी का अंदरूनी खोखलापन और सत्ता से बाहर होने का डर सामने आ रहा है, वहीं देश के सबसे बड़े विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी में प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर चल रहा अंदरूनी कलह उजागर हो रहा है।
[dc]म[/dc]जा यह है कि दोनों ही पक्षों के जो नेता कल तक मीडिया के कंधों पर सवार होकर एक-दूसरे के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे थे, अब वे ही मीडिया के खिलाफ मुट्ठियां भींच रहे हैं। सलमान खुर्शीद और वीरभद्र सिंह के द्वारा मीडियाकर्मियों के प्रति किए गए दुर्व्यवहार और अब गडकरी मामले में भाजपा नेताओं द्वारा दिए जा रहे बयान इसके प्रमाण हैं। राजनेताओं की मीडिया के प्रति यही अपेक्षा अभी तक रहती आई है कि वह केवल उनके जूतों के फीते कसने का काम करता रहे, नकेल कसने का नहीं। संदेश यही है कि मीडिया का काम भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करना नहीं है, बल्कि यह है कि राजनीतिक दल अपनी सुविधा के अनुसार जब कभी एक-दूसरे के खिलाफ आरोप लगाएं, तब वह केवल उसका प्रचार करे।
[dc]रा[/dc]जनीतिक दलों के लिए यह बर्दाश्त के बाहर हो रहा है कि अशोक खेमका जैसे सरकारी अधिकारी, सिविल सोसायटी के लोग और मीडिया सत्ता और राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार को सामने लाने का काम भी करने लगें और सड़कों पर आंदोलन भी चलाएं। आम जनता की नजरों से तलाश की जाए तो जिस गठबंधन की मजबूरी का जिक्र प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह करते रहे हैं, वह हकीकत में यही रही होगी कि दोनों राजनीतिक दलों के शीर्ष पदों पर बैठे नेताओं और उनके परिवारों से जुड़े लोगों के खिलाफ मामले सार्वजनिक रूप से नहीं उठाए जाएंगे। यही मिथ अब ध्वस्त होने जा रहा है और राजनीतिक दलों में अराजकता की स्थिति है।
[dc]स्व[/dc]तंत्रता प्राप्ति के बाद के देश के इतिहास में ऐसा क्षण पहले कभी उपस्थित नहीं हुआ, जब इतने सारे चेहरे बेनकाब होने के लिए सामूहिक रूप से उपस्थित हो गए हों। दुःख व्यक्त करने की बात यही हो सकती है कि सोनिया गांधी, नितिन गडकरी और मोहनराव भागवत तीनों ही भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की वकालत भी करते हैं और लड़ना भी नहीं चाहते। हिमाचल प्रदेश चुनावी प्रचार के दौरान सोनिया गांधी भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रामक तरीके से आवाज उठाती हैं और वीरभद्र सिंह भी उसी मंच पर साथ बैठे नजर आते हैं। ऐसा ही नागपुर में नजर आता है, जब विजयादशमी के अपने परंपरागत उद्बोधन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहनराव भागवत भ्रष्टाचार को लेकर राष्ट्रवादी उपदेश देते हैं और नितिन गडकरी न सिर्फ नजदीक बैठे रहते हैं, भाजपा अध्यक्ष से संबंधित प्रश्न को वे यह कहकर टरका देते हैं कि यह पार्टी और गडकरी के बीच का मामला है।
[dc]अ[/dc]ब पता चल रहा है कि इतने सालों से देश की जनता को अंधेरे में रखा जा रहा था और बताया यही जा रहा था कि लोगों की नजरें कमजोर हो गई हैं। सोनिया गांधी अपने यूपीए के “थर्ड टर्म” और नितिन गडकरी अपने लिए “सेकंड टर्म” की लड़ाई में जुटे रहने वाले हैं। ऐसा लग रहा है कि विश्वसनीयता नेताओं की नहीं, बल्कि जनता की समाप्त हो रही है। सबको पता है कि सरकार कभी भी किसी की बने, कांग्रेस या भाजपा के बिना नहीं बनने वाली है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *