भाजपा की जीत, 'व्यापमं' की हार

[dc]मध्यप्रदेश[/dc] में भारतीय जनता पार्टी स्थानीय निकाय चुनावों में मिली कामयाबी से शायद ये स्थापित करना चाहती है कि व्यापमं घोटाले का वोटरों पर कोई असर नहीं हुआ. वैसे तात्कालिक तौर पर ही सही, लेकिन पार्टी को इस तरह का दावा करने की छूट मिलनी चाहिए. राज्य के दस नगर निकायों में 12 अगस्त को चुनाव हुए थे और रविवार को आए नतीजों के अनुसार आठ शहरों में भाजपा को जीत मिली है. सबसे ज़बरदस्त और प्रतिष्ठित मुक़ाबले इंदौर के पास उज्जैन और ग्वालियर के नज़दीक मुरैना नगर निगमों में महापौर के पदों को लेकर थे.
चुनावों में व्यापमं घोटाले का कोई भी असर इसलिए नहीं हुआ माना जाना चाहिए कि मध्य प्रदेश में संगठन के तौर पर कांग्रेस शायद कोई चुनाव लड़ना ही नहीं चाहती.
पिछले दिनों ही गरोठ विधानसभा के लिए हुए उपचुनाव में भी जीत भाजपा की इसी तरह से हुई थी. हक़ीक़त पर ग़ौर किया जाए तो भाजपा ने उज्जैन और मुरैना में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. ये बात सही है कि इन स्थानीय निकाय चुनावों में मध्य प्रदेश के मतदाताओं पर व्यापमं घोटाले का असर नहीं हुआ.
इससे भी दिलचस्प ये बात है कि इस मुद्दे पर संसद को ठप कर देने वाले मध्य प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं ने इन चुनावों की तरफ़ झांका तक नहीं.
उज्जैन और मुरैना, दोनों ही क्षेत्र दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाले हैं लेकिन दोनों ने ही इन चुनावों की पूरी तरह से अनदेखी की.
नेताओं के नाम पर प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ने उज्जैन में दो दिन और मुरैना में केवल दो घंटे का समय दिया. दोनों स्थानों पर और अन्य क्षेत्रों में भी जहाँ नगर पालिका और नगर परिषदों के चुनाव हुए, कांग्रेसी उम्मीदवारों को इन ‘राष्ट्रीय’ नेताओं ने अपने – अपने भाग्य के भरोसे छोड़ दिया.
मध्य प्रदेश में कांग्रेस केवल राष्ट्रीय स्तर के नेता ही पैदा करने का संगठन बन कर रह गयी है . प्रदेश स्तर का अब कोई नहीं बचा. ग़ौर किया जाए कि भाजपा ने उज्जैन में अपनी समूची ताकत झोंक दी लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस उम्मीदवार डॉ कविता गोमे ने अपने दम पर 111,015 मत प्राप्त कर लिए. डॉ. गोमे की हार सिर्फ़ 23,925 मतों से हुई. मुरैना में भाजपा के अशोक अर्गल को 52,358 मत मिले और कांग्रेस के राजेंद्र सोलंकी को 40,432 मत. इतना ही नहीं, मुरैना में परिषद की 47 सीटों के लिए हुए चुनावों में भी कांग्रेस को 18 और भाजपा को केवल 15 स्थान मिले. वहां पांच बसपा के और नौ निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीते.
सच्चाई यह है कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह की सत्ता को न तो अपनी ही पार्टी में किसी तरफ़ से और न ही विपक्षी कांग्रेेस की तरफ से कोई चुनौती पेश कर रहा है.
व्यापमं घोटाले की सीबीआई जांच कब तक चलेगी और कब पूरी होगी, कुछ भी कहा नहीं जा सकता. कांग्रेस की यही हालत रही तो शिवराज सिंह के नेतृत्व में भाजपा आगे भी आने वाले सभी चुनाव इसी प्रकार जीतती रहेगी. स्थानीय निकायों के जिन दस में से आठ स्थानों पर रविवार को जीत हुई है उनमें से छह अभी तक कांग्रेस के पास थे. कांग्रेस शायद केवल ट्विटर और फेसबुक के ज़रिए ही सत्ता में वापसी का इरादा रखती है, उसे इस बात का कोई ग़म भी नजर नहीं आता.

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