१३ अगस्त २०१०
एक ऐसा कालखंड जिसमें कि चमचमाती खादी अथवा रेशमी वस्त्र धारण कर समाज अथवा राष्ट्र का मार्ग प्रशस्त करने वाले लोग वस्त्रहीन दिखाई पड़ते हों, मुनि तरुण सागर नामक एक 44 वर्षीय नंगा फकीर अगर देश के लाखों- करोड़ों लोगों को वस्त्र धारण किए हुए दिखाई पड़ता हो तो उसे दुनिया के एक आश्चर्यों में शामिल किया जाना चाहिए। यह काफी चौंकाने वाली परिस्थितियां हैं कि कतिपय बड़े-बड़े राजनेताओं, कथित धर्माचार्यों, समाजसेवियों और राष्ट्र-निर्माण की उद्घोषणा करने वाली स्थापित हस्तियों के प्रति आम जनता का लगातार मोहभंग हो रहा है। उसका एक बड़ा कारण यह है कि इन व्यक्तियों और उनसे सम्बद्ध संस्थाओं, मठों, आश्रमों, धर्म स्थानों के आचरण और उनके दुरुपयोग को लेकर आम आदमी के मन में अब भय और आतंक पैदा होने लगा है। भय, अविश्वास और धार्मिक आतंक के ऐसे माहौल में मुनि तरुण सागर पिछले तीस वर्षों से लगातार यात्रा कर रहे हैं। यह यात्रा लोगों के मन में ईश्वर के प्रति आस्था को मजबूत करने के लिए है। लोगों के मन में स्वयं के प्रति आत्मविश्वास भरने के लिए है। और साथ ही मंदिरों में विराजित महावीर को कमजोर से कमजोर व्यक्ति के अंदर स्थापित कर उसे सर्व शक्तिमान बनाने के लिए है। मुनि तरुण सागर की यात्रा इसलिए महत्वपूर्ण है कि वे लोगों को ईश्वर से विमुख होने से बचाने में जुटे हैं। अब इसे सिद्ध करने की जरूरत नहीं बची है कि धार्मिक आस्थाओं को किस तरह से साम्प्रदायिक कट्टरवाद में तब्दील कर धर्मस्थलों के उपयोग स्थापित राजसत्ताओं तख्त उलटने अथवा राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किए जाने लगे हैं। यह भी अब किसी से छुपा हुआ नहीं है रह गया है कि पवित्र उद्देश्यों की प्राप्ति की घोषणाओं के साथ समारोहपूर्वक स्थापित किए जाने वाले कतिपय मठ, आश्रम और अन्य धार्मिक स्थल संदिग्ध गतिविधियों के आरोपों के चलते किस तरह से संदेहों के घेरों में आते जा रहे हैं। एक ही ईश्वर की आराधना में जुटे भक्तों के अलग-अलग समूह किस तरह से हिंसक होकर एक दूसरे की जान लेने के लिए सडक़ों पर उतरते हैं उसके देशव्यापी प्रदर्शन होते रहते हैं। इस सबके बावजूद मुनि तरुण सागर जैसे क्रांतिकारी संत अगर विपरीत परिस्थितियों में भी सफल हो पा रहे हैं तो उसका सबसे बड़ा कारण उनका यह प्रयास है कि धर्म का उद्देश्य व्यक्ति को अंतरात्मा से जिंदा और साबुत रखना होना चाहिए। मुनि तरुण सागर का न तो घर है और न कोई मठ, आश्रम या ठिकाना। समाज के बीच से ही वे अपने भगवान की खोज और प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में उसकी स्थापना के काम में लगे हुए हैं। तेरह वर्ष की आयु में जब उनके कानों में आचार्य पुष्पदंतसागर के वचन गूंजे कि तुम भी परमात्मा बन सकते हो तब वे एक जैन होटल में बैठे-बैठे जलेबियों का स्वाद ले रहे थे। तीस वर्षों से वे लोगों को कड़ुए वचन बांट रहे हैं और लोग इन कड़ुए वचनों का भी मीठा जलेबियों की तरह स्वाद ले रहे हैं। राजनेता मीठे- मीठे उपदेश देते हैं ओर उनका असर कड़ुआ होता है। तरुण सागरजी कड़ुए वचन बोलकर लोगों के जीवन में मिठास पैदा कर रहे हैं। तरुण सागर अपने भक्तों को न तो कोई ताबीज बांटते हैं और न ही उन्हें मुसीबतों से मुक्ति के लिए कोई टोटका या तंत्र साधना सिखाते हैं। वे भविष्य वक्ता भी नहीं हैं। जन्म पत्रिकाएं भी वे नहीं पढ़ते और हाथ भी नहीं देखते। पर वे लोगों के हाथ पकडक़र उन्हें अच्छा पिता, पत्नी, पुत्र व पुत्री बनना सिखाते हैं। वे व्यक्ति की बुराइयां उजागर कर उसे अपना आध्यात्मिक गुलाम नहीं बनाते बल्कि उसकी कमजोरियों को दूर कर उसे अपनी यात्रा का हमसफर और सहयोगी बनाते हैं। ‘‘मैं महावीर को मंदिरों से मुक्त कराना चाहता हूं। यही कारण है कि मैंने आजकल तुम्हारे मंदिरों में प्रवचन करना बंद कर दिया है। मैं तो शहर के व्यस
्ततम चौराहों पर प्रवचन करता हूं क्योंकि मैं महावीर को चौराहे पर खड़ा देखना चाहता हूं। मेरी एक ही आकांक्षा है कि महावीर जैनों से मुक्त हों ताकि उनका संदेश, उनकी चर्चा, उनका आदर्श जीवन दुनिया के सामने आ सके।’’ मुनि तरुण सागर ने जब उक्त उद्घोष किया तो जैन समाज के कट्टर और परम्परावादी तबकों में भूचाल आ गया। कहा जाने लगा कि मुनि तरुण सागर भगवान महावीर को चौराहों की वस्तु बनाना चाहते हैं। तरुण सागर का वैसे ही विरोध होने लगा जैसे किसी युग में कबीर का होता था, वैज्ञानिक गैलीलियों का हुआ था। महावीर को एक धर्म विशेष से बाहर निकालकर जन-नायक बनाने का विचार क्रांतिकारी था जो रुढि़वादियों की दृष्टि में धर्म की स्थापित मान्यताओं के प्रति विद्रोह था। पर मुनि तरुण सागर अपने पथ से विचलित नहीं हुए और परिणाम सामने है। एक विचार और जीवन पद्धति के रूप में महावीर की स्थापना सम्पूर्ण भारतीय समाज में हो रही है। मुनि तरुण सागर प्रत्येक व्यक्ति में परमात्मा की स्थापना करने में लगे हैं। देश की गरीबी इस बात में कम है कि करोड़ों लोग रात को आधे पेट सो जाते हैं। ज्यादा गरीबी इस बात की है कि जो लोग पेट भर भोजन पा रहे हैं उन्हें भूखे मरने वालों की चिंता नहीं है। और सबसे बड़ी दरिद्रता इस बात की है कि अपनी ललकारभरी वाणी में इस सच्चाई के तरफ ध्यान दिलाने वालों की संख्या नहीं के बराबर है। अंदाज लगाया जाए कि एक सौ बीस करोड़ की आबादी वाले देश में मुनि तरुण सागर जैसे क्रांतिकारी कबीर कितने उपलब्ध हैं।