[dc]त[/dc]रुण तेजपाल जब इंडिगो की उड़ान से नई दिल्ली के हवाई अड्डे से गोवा के लिए रवाना हुए तो अहंकार से भरे उनके चेहरे पर ऐसी कोई शर्म नहीं थी, जो यह दर्शा सके कि वे ‘बलात्कार’ के कुकर्म के साथ तुलना किए जा सकने वाले किसी ‘यौन हमले’ के अपराधी हैं। तरुण अपनी ‘बॉडी लैंग्वेज’ से ऐसा ही कुछ दर्शाने की कोशिश कर रहे थे कि वे अपने पुराने कलीग की बेटी से की गई ज्यादती के आरोप का सामना करने गोवा पुलिस की मांद में नहीं, बल्कि ‘तहलका’ की किसी और बड़ी कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए पणजी रवाना हो रहे हैं। पचास वर्ष के तरुण तेजपाल की इस नकली बहादुरी की भाजपा के पूर्व अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण के उस मौन चेहरे से तुलना की जानी चाहिए, जिनके खिलाफ ‘तहलका’ ने 2001 में स्टिंग ऑपरेशन करवाकर 73 वर्ष की उम्र में उन्हें चार साल की सजा दिलवाई थी। कहा जाता है कि राजनीति करना हो तो बेशर्मी के साथ मोटी चमड़ी का होना भी जरूरी है। पर यहां एक नामी-गिरामी संपादक उसे पत्रकारिता के लिए उल्टा साबित करना चाह रहा था। जेल जाने का खौफ तरुण तेजपाल के चेहरे पर इस तरह चस्पा है कि अपने खिलाफ लगे ‘फूलप्रूफ’ आरोपों को भी एक राजनीतिक षड्यंत्र करार देकर बरी होना चाहते हैं। वह स्वयं को यकीन दिलाना चाहते हैं कि देश की जनता और मीडिया को पीड़िता की ईमानदारी पर नहीं, बल्कि ‘तहलका’ के इस (अभूत)पूर्व संपादक की ‘बेईमानी’ पर ज्यादा भरोसा करना चाहिए। तरुण तेजपाल ‘तहलका’ नामक उस संस्था के संस्थापक-संपादक रहे हैं, जिसे मीडिया के क्षेत्र में नई स्थापनाएं करने और खोजपूर्ण खबरनवीसी के लिए जाना जाता (रहा) है। युवा पत्रकारों के लिए ‘तहलका’ नाम की संस्था का ठिकाना हसीन सपनों की तरह रहा है।
[dc]दु[/dc]र्भाग्यपूर्ण है कि तरुण तेजपाल ने गोवा की सितारा होटल की लिफ्ट में ऐसी उड़ान भरी कि ‘तहलका’ की समूची पत्रकारिता जमीन पर आ गई। नारायण साईं की तरह वे पुलिस की गिरफ्त से भागते रहे पर आसाराम की तरह उन्हें अंत में कानून के सामने पेश होना पड़ा। तरुण तेजपाल बहुत ताकतवर संपादक हैं। ‘बिजनेस वीक’ पत्रिका ने वर्ष 2009 में ही उनकी गिनती देश के सबसे शक्तिशाली पचास लोगों में कर दी थी। देश की एक सबसे बड़ी पार्टी के दिग्गज नेता घोषित-अघोषित रूप से तरुण तेजपाल को बचाने में लगे हैं, जबकि एक दूसरा बड़ा राजनीतिक दल दिल्ली के अपने सारे पुराने हिसाब उनके साथ गोवा में चुकता कर लेना चाहता है। बंगारू लक्ष्मण को उनके सहयोगियों ने सूचित किया है कि पाप का घड़ा भर चुका है। ‘यौन हमले’ की शिकार पत्रकार की पीड़ा पर अब सत्ता की राजनीति की जा रही है। तरुण तेजपाल अपनी बेटी की उम्र की और उसी की मित्र पीड़िता पत्रकार को अब गैर-नशे की स्थिति में राजनीतिक हमले का शिकार बनाना चाह रहे हैं। तेजपाल की पैरवी करने वाले दल का मानना है कि गोवा में चूंकि भाजपा की सरकार है, वहां उन्हें न्याय नहीं मिल पाएगा। पार्टी को पीड़िता के न्याय की उतनी चिंता नहीं है। दूसरी ओर, विपक्ष के कुछ बड़े नेता अपने सारे महत्वपूर्ण कामकाज छोड़कर जिस उत्साह के साथ तेजपाल के किए के लिए सजा की व्यवस्था करवाना चाहते हैं, उससे चुनावों के बाद की पत्रकारिता के लिए बजने वाली घंटियों की आवाजें अभी से सुनाई देने लगी हैं। बुद्धिजीवियों की जमातें भी तरुण तेजपाल को बचाने और सजा दिलाने में बंट गई हैं। पर तरुण तेजपाल अपने बचाव के इन तर्कों को सिद्ध करने में सफल नहीं हो पाएंगे कि उनके खिलाफ दर्ज प्रकरण इसलिए एक राजनीतिक षड्यंत्र है कि पीड़िता रिपोर्टर द्वारा विलंब से दायर की गई शिकायत को प्रामाणिक नहीं माना जा सकता। तरुण तेजपाल पहले तो पीड़िता की नजरों में ही गिरे थे, अब अपने बचाव में दिए जाने वाले तर्कों के कारण देश की नजरों में भी गिरते जा रहे हैं। इस सबके बीच पीड़िता की मां के इस आत्मविश्वास पर भरोसा किया जाना चाहिए कि उनकी बेटी अपनी लड़ाई को अंत तक जारी रखेगी।