इस अद्भुत संयोग की दाद दी जानी चाहिए कि अण्णा और आडवाणी दोनों के ब्लॉग्स लगभग एकसाथ प्रकट हुए और दोनों का ही संबंध स्वयं के भविष्य के साथ ही देश में विपक्ष की राजनीति से भी है। अण्णा ने अपने ब्लॉग के जरिए ‘टीम अण्णा” को भंग कर दिया है। अब ‘टीम” के नाम पर अण्णा ही बचे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ टेलीविजन, रामलीला मैदान और जंतर-मंतर पर पिछले सोलह महीनों से संघर्षरत ‘टीम अण्णा” के पूर्व सदस्य अब क्या करने वाले हैं, देश और सरकार को पता नहीं है। सही पूछा जाए तो ‘टीम अण्णा” तो जंतर-मंतर पर अनशन समाप्त होने के साथ ही भंग हो चुकी थी। अण्णा की जैसी चमत्कारिक घोषणा 3 अगस्त को अनशन समाप्त कर, राजनीतिक विकल्प की तलाश में जनता के बीच जाने की थी, वैसा ही चमत्कार उन्होंने 6 अगस्त को अपनी टीम को भंग करके फिर दिखा दिया। दोनों ही मुद्दों पर उन्होंने न तो जनता से राय ली और न ही रालेगण सिद्धि के लोगों से पूछा। इस मामले में भी उनमें और आडवाणी में समानता है। आडवाणी ने भी पार्टी में कोई पूछताछ नहीं की थी। आडवाणी का लोकतंत्र में इतना यकीन है कि वे ब्लॉग में विचार लिखते समय भी उतनी ही आजादी बरतते हैं जितनी कि जिन्ना की समाधि पर श्रद्धासुमन अर्पित करते समय।
देश को जब आजादी प्राप्त हो गई और सारा काम खत्म हो गया तब गाँधीजी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू और अन्य नेताओं को सलाह दी थी कि चूँकि कांग्रेस का मिशन अब समाप्त हो गया है अत: अब उसे भंग कर लोकसेवक संघ में परिवर्तित कर देना चाहिए। कांग्रेस के नेताओं को चूँकि तब तक लालकिले की प्राचीर का राजनीतिक महत्व समझ में आ गया था, अत: उन्होंने एक राजनीतिक संगठन कांग्रेस को जनता के संगठन लोकसेवक संघ में बदलने से इंकार कर दिया। टीम अण्णा के साथ उलटा हुआ है। भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष के लिए बने ‘जनता के संगठन” को ‘जन लोकपाल” की स्थापना का मिशन पूरा हुए बगैर ही एक राजनीतिक पार्टी में परिवर्तित करने की घोषणा कर दी गई। टीम अण्णा के अनशन की समाप्ति के समय जंतर-मंतर पर अरविंद केजरीवाल जब अपना उद्बोधन दे रहे थे, तब ऐसा लग रहा था जैसे अण्णा के ‘जवाहर” लालकिले से नए भारत के निर्माण की रूपरेखा देश को समझा रहे हैं। अण्णा ने अपने ब्लॉग पर जो कुछ लिखा है, उससे कोई आशा नहीं बँधती। उस जनता को जिसने अपनी गाढ़ी कमाई के सोलह महीने आंदोलन को दिए हैं पता ही नहीं चला कि क्यों टीम अण्णा को भंग किया गया और अब आगे क्या होने वाला है। उन लाखों-करोड़ों लोगों का अब क्या होगा जिन्होंने इस उम्मीद के साथ अपने आपको भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से जोड़ा था कि देश में अब कुछ बदलाव होने वाला है। टीम अण्णा के भंग होने के साथ ही क्या उस बदलाव की संभावना भी भंग हो गई है?
टेलीविजन के कैमरों पर राजनीति के उन उद्दंड चेहरों को हम उनकी ऊँची आवाजों में फिर से देखने लगे हैं जो किसी वक्त अण्णा से क्षमायाचना और टीम अण्णा के साथ वार्तालाप की मुद्रा में साष्टांग करते नजर आते थे। वक्त के साथ इन चेहरों का अहंकार और सिविल सोसाइटी की नुमाइंदगी के प्रति तिरस्कार और बढ़ने वाला है। अण्णा ने अपने ब्लॉग पर लिखा है कि ”जन लोकपाल के कार्य के लिए टीम अण्णा बनाई गई थी। सरकार से संबंध नहीं रखने का निर्णय लिया है। इस कारण आज से टीम अण्णा नाम से चला हुआ कार्य समाप्त हो गया है और अब टीम अण्णा समिति भी समाप्त हुई है।”” यह जानकारी काफी आश्चर्यजनक है। ‘टीम अण्णा” चाहे भंग हो गई हो। भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में जनता ने अपने आपको अभी भंग नहीं किया है।