[dc]डॉ.[/dc] मनमोहन सिंह आज अपने मंत्रिमंडल का पुनर्गठन करने जा रहे हैं। सारे देश और समूचे मीडिया की नजरें अब कुछ वक्त के लिए राबर्ट वाड्रा, नितिन गडकरी और कोयला खदानों से हटकर उन ‘युवा” चेहरों की ओर टिक जाएगी, जो अस्सी वर्षीय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कांग्रेस को अगले चुनावों तक ले जाने वाले हैं। इस बहु-प्रतीक्षित फेरबदल से जो लोग बहुत उम्मीदें लगा रहे हैं उन्हें निराशा भी हाथ लग सकती है। शायद पूछा जाने लगेगा कि अगर यूपीए का यही मंत्रिमंडल श्रेष्ठ साबित होना था तो यह अवसर तो वर्ष 2009 में भी उपलब्ध था। तीन साल गंवाने के बाद यह कसरत क्यों की जा रही है? सही पूछा जाए तो कांग्रेस के पास खोने के लिए अब केवल सरकार ही बची है, इसलिए नए जनादेश की मांग के लिए सड़कें नापने से पहले इस तरह की कोशिशों को अंजाम देना भी जरूरी था और साथ ही नए सिरे से कुछ करके दिखा पाने का संकल्प व्यक्त करना भी। मान लिया जाना चाहिए कि राहुल गांधी अगर सरकार में शामिल नहीं भी होते हैं तो भी जिस मंत्रिमंडल को आज पेश किया जाने वाला है वह उन्हीं की पसंद का है और विभागों के बंटवारे भी उनकी ही मर्जी से होने वाले हैं। जनता की दिलचस्पी इस बात का जायजा लेने में जरूर हो सकती है कि गठबंधन की मजबूरियों से मुक्त होने के बाद प्रधानमंत्री ऐसे कितने चेहरे देश के समक्ष पेश करते हैं जिनकी कि छबि दागदार नहीं है यानि जिन पर अब किसी भी तरह के आरोपों की उधारी बकाया नहीं है। इस पुनर्गठित मंत्रिमंडल में अब न तो तृणमूल कांग्रेस का कोई प्रतिनिधि होगा और न ही द्रमुक का। इसमें भी दो मत नहीं कि इस फेरबदल की कुंडली गुजरात और हिमाचल में इसी साल के अंत में और मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान सहित कुछ अन्य प्रदेशों में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावांे को देखते हुए कम और लोकसभा चुनावों की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए ज्यादा तैयार की गई है। मंत्री पद से मुक्त होकर संगठन की सेवा करने का अवसर प्राप्त होने से अपने आपको धन्य समझने वाले नेताओं की बदली हुई बॉडी लेंग्वेज देखकर अंदाज लगाया जा सकता है कि अगर ये लोग वास्तव में ही काम में जुट गए, तो कांग्रेस को कितना फायदा प्राप्त होने वाला है। जिन नए चेहरों को भी मंत्रिमंडल में जगह दी जाने वाली है और जिन लोगों को प्रमोट किया जाएगा उससे आगे का गणित बैठाया जा सकता है कि ताश के बावन पत्तों की सीमा में ही पुनर्गठन की प्रक्रिया किस तरह की रही होगी। इसलिए मानना मुश्किल है कि पिछले तीन वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार ने जिस तरह से देश को निराश किया है उसकी भरपाई डॉ. मनमोहन सिंह अपनी ‘नई टीम” के जरिए कर सकेंगे। सलमान खुर्शीद, श्रीप्रकाश जायसवाल, बेनीप्रसाद वर्मा आदि नेता अगर संगठन के काम के लिए स्पेयर नहीं किए जाते हैं और अपने मंत्री पदों पर बने रहते हैं तो मान लिया जाना चाहिए कि सरकार में केवल विभाग ही बदलते हैं उसका कामकाज नहीं। इस फेरबदल का अंतिम परिणाम शायद यही निकलने वाला है कि अब अगले चुनावों तक के लिए प्रधानमंत्री के साथ-साथ जनता भी राहत की सांस ले सकेगी।