[dc]रा[/dc]जनीति भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के साम्राज्य की एक गंदी गटर में तब्दील होती जा रही है और ‘अतुलनीय भारत” के नागरिकों का इस्तेमाल उसमें पलने वाले कीड़ों के रूप में किया जा रहा है। फिल्म के नायक/खलनायक जैसे रातों-रात बदल दिए गए हैं। जो लोग एक्स्ट्रा कलाकारों के रूप में और मंच के कोनों में छुपे रहते थे वे अचानक से कैमरों के फोकस में आ गए हैं। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह भीष्म पितामह की तरह हमेशा जैसी चुप्पी साधे हुए हैं। वे केवल विदेशी निवेश और विकास की दर पर ही बात करना चाहते हैं। भ्रष्टाचार पर किसी भी तरह की बहस को वे प्रगति-विरोधी नकारात्मक सोच करार देना चाहते हैं। अब मुद्दा यह नहीं बचा है कि सलमान खुर्शीद व उनकी पत्नी ने विकलांगों की मदद के लिए बनाए गए अपने ही ट्रस्ट में 71 लाख रुपए की सरकारी मदद में घपला किया या नहीं। बहस और चिंता का विषय यह है कि देश के कानून मंत्री को अपने बचाव में जिस तरह की भाषा और अनियंत्रित क्रोध का इस्तेमाल करना पड़ रहा है वह कितना जायज और अपेक्षित है। कानून मंत्री को अपने ऊपर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर उस अरविंद केजरीवाल को जवाब देना पड़ रहा है, जिनके साथ साल भर पहले तक ही वे देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए लोकपाल विधेयक तैयार करने के लिए बातचीत में लगे हुए थे। इस सवाल का तो कोई जवाब ही नहीं है कि अण्णा हजारे से अलग होने के बाद अरविंद केजरीवाल के तात्कालिक एजेंडे में जनलोकपाल बिल के लिए कोई जगह नहीं है। तोपों और गोला-बारूद के निशाने बदल दिए गए हैं। विकलांगों की बैसाखियों कोे सत्ता की सीढ़ियों को नापने और शिखरों पर बने रहने का साधन बनाया जा रहा है। देश भर के विकलांग आश्वस्त हैं कि इस लड़ाई की सफलता या असफलता से उनके भाग्य नहीं बदलने वाले हैं। केवल भाग्य विधाताओं की ही तकदीरों में उलटफेर होने वाला है। भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली के रामलीला मैदान से छेड़ी गई लोकपाल की लड़ाई सरकार और अरविंद केजरीवाल के बीच जोर आजमाइश में बदल गई है। सरकार के एक जिम्मेदार विभाग का मंत्री अपने पूरे होशों-हवास में खिलखिलाते हुए कहता है कि (सलमान जैसे) एक मंत्री के लिए 71 लाख बहुत ही छोटा अमाउंट है। 71 करोड़ होता तो हम भी सीरियस होते। मंत्रीजी फिर अपने कहे पर हमेशा की तरह पलट भी जाते हैं और सरकार में बने भी रहते हैं।
[dc]स[/dc]लमान खुर्शीद और उनके ट्रस्ट के खिलाफ लगे आरोपों की सत्यता कब और कैसे स्थापित होगी कहा नहीं जा सकता। आरोपों की जांच उत्तरप्रदेश में हो रही है जहां कि समाजवादी पार्टी की सरकार सत्ता में है। पार्टी के मुखिया के खिलाफ सीबीआई की जांच का इस्तेमाल यूपीए संसद में अपना बहुमत बनाए रखने में करना चाह रही है। विपक्ष की भी इस बात में रुचि हो सकती है कि चुनावों तक पूरा मामला ऐसे हीे चलता रहे जिससे कि कांग्रेस के साथ ही समाजवादी पार्टी को भी निशाने पर लिया जा सके। हालांकि देश की राजनीति में न तो इस तरह की परंपरा बची है और न ही इस तरह के नायक कि आरोपों के सिद्ध होने तक अपने पद से इस्तीफा दे दिया जाए पर सलमान खुर्शीद चाहें तो एक नई शुरुआत कर सकते हैं। शक है कांग्रेस उन्हें ऐसा करने देगी। सिलसिला चला तो फिर थमेगा नहीं। इस समय राजनेताओं की ईमानदारी ही नहीं सिविल सोसायटी की नैतिकता और मीडिया की विश्वसनीयता भी दाव पर लगी हुई है। किसी एक को अंतत: शर्मिंदगी का सामना करना ही पड़ेगा। कोई तो झूठ बोल रहा है। सवाल यह है कि उसके लिए दी जाने वाली कीमत क्या होगी और उसकी वसूली किससे की जाएगी। एक बात जो तय है वह यह कि विकलांगों की कीमत पर सभी पक्षों के जो चेहरे सामने आ रहे हैं वे बहुत ही डरावने हैं।