[dc]आ[/dc]डवाणी समेत भाजपा के वे सभी नेतागण जो गोवा में नरेंद्र मोदी का सामना करने से कतरा रहे हैं, बीमारी की मुद्रा में हैं। उन्हें पता है कि हवाई अड्डे पर उतरते ही पणजी शहर में उनका सामना नरेंद्र मोदी के पोस्टरों, बैनरों और कट आउट्स से होगा। ये तमाम बहादुर नेता सोनिया गांधी की पार्टी से दो-दो हाथ करने को तो आधी रात को भी तैयार हैं पर मोदी से दिन के उजाले में भी रू-ब-रू होकर गुजरात के मुख्यमंत्री के मुंह पर यह कहने से खौफ खा रहे हैं कि ‘हमें आपका नेतृत्व मंजूर नहीं है। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर ने प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी का खुलेआम समर्थन कर इन नेताओं की दुविधा की आग में और घी डाल दिया है। पार्रिकर ने तो आडवाणी को ‘सेवानिवृत होने तक की सलाह दे डाली है। भाजपा में ऐसी स्थितियां पहले कभी पैदा नहीं हुईं कि असंतुष्टों के एक समूह ने अपना ‘कैकयीकरण कर लिया हो और अपनी आत्माओं को ‘कोपभवनों में परिवर्तित कर दिया हो। मोदी तो ‘आर-पार की लड़ाई के लिए सब कुछ तय करके ही गोवा पहुंचे हैं। पर जिन नेताओं को मोदी से परहेज है वे अपनी स्वयं की और पार्टी की प्रतिष्ठा तो दांव पर लगाने को राजी हैं पर गोवा पहुंचकर मोदी के विरोध में हाथ ऊंचे करने को तैयार नहीं हैं। राजनाथ सिंह बखूबी समझते हैं कि पार्टी अध्यक्ष के रूप में अगर उन्हें अपने नेतृत्व की ताकत बनाए रखनी है तो ‘इस ओर या ‘उस ओर का कोई फैसला लेकर दिखाना ही होगा। वे अगर आडवाणी की अनुपस्थिति में फैसले ले लेते हैं तो बहुत सारी सफाइयां देने से बच जाएंगे पर आगे के लिए नई दिक्कतें भी खड़ी कर लेंगे। दिक्कतें भी साफ हैं कि पार्टी दो फाड़ हो जाएगी। इसके लिए मोदी तो तैयार हैं पर राजनाथ नहीं। वे तमाम नेता जो गोवा पहुंचने से घबरा रहे हैं अपनी अस्वस्थता की आड़ में अपनी ही पार्टी को बीमार करने की तोहमत मोल ले रहे हैं। एक कथित अनुशासनप्रिय पार्टी जिसके बारे में कहा जाता रहा है कि वह नागपुर के डंडे के दम चलती है, उसके कवच में पहली बार सीधी वाली दरारें पड़ती दिख रही हैं। इस बार संसद की कार्यवाही नहीं बल्कि उसकी स्वयं की कार्यवाही ठप पड़ती नजर आ रही है। आडवाणीजी को सलाह दी जानी चाहिए कि अपनी ‘अस्वस्थता के बावजूद गोवा की ओर कूच करें। अगर उन्हें यह स्वीकार्य नहीं है कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के लिए पार्टी का चुनावों में नेतृत्व करें तो अपनी बात को वे मजबूती के साथ गोवा में व्यक्त करें। परिणाम फिर चाहे जो भी निकले। इससे उनकी पार्टी भी मजबूत होगी और आडवाणीजी के साहस के प्रति देश का सम्मान भी बढ़ेगा।