याद आ जाते हैं पिता अक्सर ही इन दिनों। भरने लगता है पानी घर में, जब-जब भी बरसात का दिखने लगता है कृशकाय शरीर उनका उलीचते हुए पानी झुक-झुककर। और तभी लगती हैं झांकने झुर्रियां पड़ी बूढ़ी होती पीठ उनकी फटी हुई कमीज़ के नीचे से। न जाने कहां चले गए वे – बिना कुछ […]
Poetry
और वह हाथ – जिसने पकड़ रखा था मज़बूती से, पहाड़ की तरह कंधा मेरा कुछ क्षण पहले तक – लटका हुआ था गले के पास ढीला होकर अचानक से लगा था एकबारगी मुझे। सो गया होगा, शरीर उसका थकान से लंबी यात्रा की पर हरगिज़ ही नहीं था वैसा कुछ भी, कहीं। और वह […]
सबसे पहले आए आगे वे लोग हिम्मत करके ढूंढ़ रहे थे जो आंसुओं के तूफ़ान में तिनकों-से तैर रहे सपनों सूखी हुई मछलियों टीन के कनस्तर में सहेजकर रखा अनाज और बीती रात चटाई के सिरहाने दबाए हुए चश्मे को। क्या बात है! थम ही नहीं रहे हैं आंसू दिख रहा है सब कुछ धुंधला-धुंधला-सा […]
ऊंची-ऊंची हवेलियों में पसरे और सोने-चांदी जड़े मखमली गद्दों पर पैदा होते थे सरकार कभी। मिलने के लिए बनाकर कतारें लंबी-लंबी खड़ी रहती थीं बस्तियां सुबह से शाम तक पेश किया जाता था नज़राना उतारी जाती थीं नज़रें सरकार की। साठ साल लंबी रात में बदला तो है बहुत कुछ – ज़मींदोज़ हो गई हैं […]