[dc]कां[/dc]ग्रेस के जयपुर चिंतन शिविर में श्रीमती सोनिया गांधी के उद्बोधन की
इस बात के लिए तारीफ करना चाहिए कि उसमें कांग्रेस अध्यक्ष ने उन तमाम
मुद्दों को भी उठा दिया जिन्हें लेकर विपक्ष, सिविल सोसायटी और सोशल
मीडिया सरकार की आलोचना कर रहा है और साथ ही अपनी साफगोई के लिए उन्होंने
तालियां भी बटोर लीं। श्रीमती गांधी के भाषण से जिस एक बात की झलक मिलती
है, वह यह कि जिन मुद्दों को लेकर जनता आंदोलित है और युवा तमाम अवरोधों
की धज्जियां उड़ाते हुए सत्ता के ठिकानों तक अपनी आवाज पहुंचाने को आमादा
है, उन्हें कांग्रेस अब अपने चुनावी घोषणा पत्र का आधार बनाना चाहती है।
फिर मुद्दा चाहे महिलाओं पर अत्याचार का हो, जल-जंगल-जमीन पर
नागरिक-अधिकारों का या फिर भ्रष्टाचार का। श्रीमती गांधी जब कहती हैं कि
हमारे नागरिक सार्वजनिक जीवन के ऊंचे स्तर पर भ्रष्टाचार को देखकर जायज
तौर पर आजिज आ गए हैं तो शायद इसी ओर इशारा करती प्रतीत होती हैं कि जनता
की लड़ाई के साथ कांग्रेस अब विनम्र तरीकों और सहानुभूति के साथ निपटने का
इरादा रखती है। लाठी, अश्रुगैस के गोलों और पानी की बौछारों के साथ
नहीं। ‘हमारे नौजवान अपने अधिकारों के लिए मुखर हो रहे हैं। वे चाहते हैं
कि उनकी आवाज सुनी जाए।”
[dc]कां[/dc]ग्रेस अध्यक्ष की इस चिंता का जवाब तो निश्चित ही चिंतन शिविर में
व्यक्त होते विचारों और उसमें तय होने वाली रणनीति से ही मिलेगा कि
कांग्रेस कई राज्यों में लंबे अरसे से सत्ता से बाहर क्यों है और यही
स्थिति अगर लोकसभा चुनावों के बाद केंद्र में भी निर्मित हो गई तो उसका
कितना उलटा असर ‘हमारे मनोबल और संगठन” पर पड़ने वाला है। जयपुर चिंतन
शिविर को इसलिए महत्वपूर्ण गिना जा सकता है कि इसकी सार्वजनिक आवाज नई
दिल्ली के निकट बुराड़ी में हुए कांग्रेस के अधिवेशन से ज्यादा अलग तो
नहीं है पर इसके नतीजे पार्टी के गिरते मनोबल को संभालने में महत्वपूर्ण
भूमिका निभा सकते हैं। दूसरे यह कि पचमढ़ी से शिमला होते हुए बुराड़ी तक तो
राहुल गांधी बहुत ज्यादा ‘लाइम लाइट” में नहीं थे, पर अब ‘हवा महल” के
शहर में कांग्रेस के युवा नेता अपने साथ-साथ पार्टी का भविष्य भी तय करने
की हैसियत में हैं। श्रीमती गांधी जब अपने उद्बोधन में कहती हैं कि आज का
भारत सोशल मीडिया, मोबाइल फोन और इंटरनेट के जरिए अपनी आवाज बुलंद करने
और संवाद करने में ज्यादा सक्षम है- तो यकीन किया जाना चाहिए कि चुनावों
का सामना करने से पहले कांग्रेस अपने सोच और नेतृत्व में बदलाव लाने की
तैयारी में है। यह बदलाव अगर वास्तव में ही ईमानदार है तो उसका स्वागत भी
किया जा सकता है।