सरकार की शुरुआत, कसाब का अंत

[dc]स[/dc]रकार चाहती तो कसाब को फांसी पर चढ़ाने का फैसला काफी पहले भी कर सकती थी। पर इसके लिए जिस साहस की जरूरत थी वह शायद उसके पास नहीं था। मुंबई के नागरिकों के धैर्य और उनकी बहादुरी पर सरकार की कायरता भारी पड़ रही थी। सरकारों का गणित आम जनता की संवेदनाओं और अपेक्षाओं से कभी मैच नहीं करता। सरकारों के ज्योतिषी भी अलग होते हैं। बाल ठाकरे के निधन के शोक में डूबे मुंबईकर को कसाब की फांसी की खबर से ही चीयरफुल बनाया जा सकता था और नागरिकों का ध्यान शिवाजी पार्क की ओर से हटाकर पुणे की ऐतिहासिक येरवडा जेल की ओर केंद्रित किया जा सकता था। मुंबई की जनता ने तो अपने ऊपर हुए आतंकी हमले के दो दिन बाद ही अपने आपको आतंकवाद और आतंकवादियों के डर से मुक्त कर लिया था, पर सरकार को कसाब के खौफ से मुक्त होने में चार साल लग गए। निश्चित ही सरकार अब देश की आबरू पर हमला करने के दोषी अफजल गुरु के बारे में भी जल्द ही कोई फैसला लेना चाहेगी। जैसे-जैसे सरकार का कार्यकाल समाप्त हो रहा है और कमजोर नजर आ रही है वह अपना हाथ जनता की नब्ज के नजदीक से नजदीक करने की जल्दी में है। विपक्ष के साथ संसद में दो-दो हाथ करने का उसका साहस भी उसके इसी प्रयास का अंग है। संसद का धमाकेदार और निर्णायक सत्र प्रारंभ होने की पूर्व संध्या पर विपक्षी हमलों की धार को भोथरा करते हुए जनता की वाहवाही को अपने साथ समेटने की कोशिश सरकार के भविष्य के लिए भी निर्णायक साबित हो सकती है। कसाब तो आतंकवाद और आतंकवादी प्रवृत्तियों का केवल एक प्रतीक भर था। उसके लिए फंदे का इंतजाम करके सरकार ने वास्तव में तो फांसी उन तमाम आशंकाओं पर लगाना चाही है जो आतंकवाद से निपटने की उसकी नीयत और क्षमताओं के प्रति संदेह उत्पन्ना कर रही थी। अपनी गिरती हुई साख के बीच जरदारी सरकार से दुश्मनी की कीमत पर बराक ओबामा प्रशासन ने पाकिस्तान में घुसकर ओसामा बिन लादेन को मारने का फैसला लिया था। कसाब की फांसी के ऑपरेशन-एक्स को भी मीडिया प्रचार से दूर अमेरिकी अंदाज में ही पूरी तरह गुप्त रखा गया। व्हाइट हाउस में ओबामा की वापसी में बहुत मुमकिन है उस निर्णायक क्षण का भी कोई योगदान रहा हो। हम अपनी सरकार को भी ओबामा प्रशासन की तरह ही हैरत के साथ समझदार होते हुए तो देख रहे हैं पर कहते हुए डर लगता है कि चीजें काफी बिगड़ चुकी हैं और देर भी हो चुकी है। सरकार ने अपनी पूरी सोच-समझ के साथ मुंबई के नागरिकों को न्याय दिलाने की जो पहल कसाब की फांसी के साथ शुरू की है उसकी चुनौतियां सीमा पार तक जाने वाली हैं। मुंबई हमले के जिम्मेदार अपराधियों में कसाब न तो पहले क्रम पर था न ही अंतिम क्रम पर। देश की जनता की इस मांग का हिसाब सरकार पर बकाया रहेगा कि सजा तो मुंबई हमले के लिए जिम्मेदार सभी दोषियों को और बराबर की मिलनी चाहिए जिनमें कि मास्टर माइंड हाफिज सईद भी शामिल है। देश यह मानकर चल रहा है कि आतंकवाद के खिलाफ सरकार जो कुछ भी कार्रवाई कर रही है उसमें उसकी नीयत साफ है और वोटों की राजनीति के लिए कोई स्थान नहीं है। जनता के इस विश्वास को सिद्ध करने की जिम्मेदारी भी सरकार की ही है।ुुु

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