[dc]डॉ.[/dc] वेदप्रताप वैदिक को ‘देशद्रोही’ करार देते हुए उनकी गिरफ्तारी करने की मांग सरकार से की जा रही है। जनता को ‘शिक्षित’ किया जा रहा है कि डॉ. वैदिक ने लाहौर में भारत देश के खिलाफ वैसा ही अपराध किया है, जैसा कि अजमल कसाब ने मुंबई में किया था। सवाल किए जा रहे हैं कि डॉ. वैदिक पाकिस्तान क्यों गए? किसके आमंत्रण पर गए? किसके खर्चे पर वहां रुके? और सैकड़ों लोगों की हत्या के गुनहगार तथा मुंबई हमले के सरगना हाफिज सईद से उन्होंने मुलाकात किस इरादे से की? डॉ. वैदिक पर हो रहे हमले में कांग्रेस, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एक हो गए हैं। वैसे भी मामला मुंबई हमले के ‘मास्टरमाइंड’ से मुलाकात करने को लेकर मुंबई की भावनाओं के साथ जुड़ गया है और महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव सिर पर खड़े हैं।
[dc]डॉ.[/dc] वैदिक की यह ‘गलतफहमी’ अब तलक दूर हो चुकी होगी कि वे देश की सभी राजनीतिक पार्टियों के ‘डार्लिंग’ हैं। उनके सभी तथाकथित पूर्व प्रधानमंत्री ‘मित्र’ इस समय सन्नाटा ओढ़े हुए ‘चुप’ हैं। इनमें वैसे ही कम बोलने वाले डॉ. मनमोहन सिंह और अपने प्रधानमंत्रित्व काल में डॉ. वैदिक से लगातार हिंदी सीखने वाले एचडी देवेगौड़ा को शामिल करना जरूरी है। देश के वरिष्ठ पत्रकारों की एक बड़ी जमात सत्तर वर्षीय डॉ. वैदिक से जवाब-तलब कर रही है कि आतंकवादी हाफिज सईद से मुलाकात के फोटो में उनके हाथों में कोई कलम, नोटबुक या टेपरिकॉर्डर क्यों नहीं दिखाई दे रहा है? अत: उन्हें पत्रकार कैसे माना जा सकता है? मांग की जा रही है कि डॉ. वैदिक आतंकवादी सरगना के साथ हुई अपनी बातचीत का पूरा हिसाब-किताब देश के समक्ष पेश करें। ‘नवभारत टाइम्स’ हिंदी दैनिक तथा ‘भाषा’ संवाद एजेंसी के पूर्व संपादक तथा देशभर के समाचार-पत्रों के लिए प्रतिदिन लेखन करने वाले डॉ. वैदिक से उनका पत्रकारिता करने का लाइसेंस जब्त करने की तैयारियां की जा रही हैं। कांग्रेस पार्टी इंदिरा गांधी की अनुपस्थिति और सत्ता से बाहर कर दिए जाने के बावजूद देश में फिर से ‘आपातकाल’ लगवाकर लिखने-पढ़ने और बोलने की आजादी को सीमित करवाने के लिए मोदी सरकार पर दबाव बनाना चाहती है। कांग्रेस के कोई पचास से अधिक वर्षों के शासनकाल में डॉ. वैदिक और उनके जैसे (या उनसे अलग भी) दूसरे पत्रकार और राजनीतिक विषयों के जानकार पचासों बार पाकिस्तान गए होंगे, कई लोगों से वहां मिले भी होंगे, वहां से लौटने के बाद कुछ लिखा भी होगा और काफी कुछ नहीं भी लिखा होगा, पर एक ‘देशद्रोही’ की तरह का वैसा सलूक कभी किसी के साथ नहीं हुआ होगा, जैसा कि वर्तमान में डॉ. वैदिक के साथ किया जा रहा है। हजारों लोगों की सभा को देशभक्ति के मंत्रोच्चारों से संस्कारित करते रहने वाले एक कट्टर आर्यसमाजी और महर्षि दयानंद सरस्वती के अनुयायी डॉ. वैदिक को एक अपराधी करार देते हुए भीड़ के हवाले किया जा रहा है।
[dc]डॉ.[/dc] वैदिक का अपराध यह है कि मध्य प्रदेश के इंदौर जैसे एक छोटे-से शहर के साधारण बनिया परिवार में जन्म लेने के बावजूद वे अपनी योग्यता के दम पर ‘अंग्रेजी’ के आधिपत्य वाली राजधानी दिल्ली में हिंदी को प्रतिष्ठापित करने में सफल हो गए। और फिर उन्हें दिल्ली में राजेंद्र माथुर और प्रभाष जोशी जैसे प्रतिभाशाली ‘इंदौरियों’ का सान्न्ध्यि भी प्राप्त हो गया। डॉ. वैदिक इस ‘महत्वाकांक्षा’ के अवश्य ही अपराधी हैं कि जिन ऊंचाइयों को प्राप्त करने की योग्यता को हासिल करने के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वे वहां से हमेशा नीचे धकेले जाते रहे। आरएसएस और भाजपा को बताया जाता रहा कि डॉ. वैदिक तो मनमोहन सिंह के दोस्त और राहुल गांधी के प्रशंसक हैं और कांग्रेस के नेताओं तक डॉ. वैदिक के बाबा रामदेव और सुदर्शनजी और मोहन भागवत जैसे संघ के दिग्गजों के साथ संबंधों का ब्योरा पहुंचता रहा। नतीजतन, डॉ. वैदिक अपने ही ‘बड़बोलेपन’ के शिकार होकर संकट की घड़ी में अकेले पड़ गए। जिन भी बड़ी-बड़ी हस्तियों से अपने व्यक्तिगत संबंध होने का या उन लोगों के अपने घर आने-जाने का डॉ. वैदिक सही या अतिरंजित ब्योरा बांटते रहे हों, उद्धव ठाकरे, संजय राऊत, डीपी त्रिपाठी, गुलाम नबी आजाद और मुख्तार अब्बास नकवी के हमलों के दौरान डॉ. वैदिक के समर्थन में कोई भी सार्वजनिक रूप से प्रकट नहीं हुआ। पहले पाकिस्तान में एक ‘गलत आदमी’ के साथ मुलाकात करना, फिर उस मुलाकात को ‘सोशल मीडिया’ के जरिए एक बड़ी ‘उपलब्धि’ और ‘स्कूप’ की तरह ‘ग्लैमराइज’ करना और फिर अपने किए का एक अतिरंजित आत्मविश्वास के साथ इलेक्ट्रॉनिक चैनलों पर बचाव करना डॉ. वैदिक और उनके शुभचिंतकों के लिए अंतत: भारी पड़ गया। लेखन से मिलने वाले पारिश्रमिक के जरिए जीविका चलाते हुए दिल्ली की मेट्रो में सफर करने वाले, कई पुस्तकों के रचयिता डॉ. वैदिक क्या वर्तमान संकट से मुक्त होने के बाद अपने आपको बदल डालेंगे? ‘स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज’ में डॉक्टरेट के दौरान वैदिक द्वारा अपना शोध प्रबंध हिंदी में लिखने की जिस लड़ाई को डॉ. राममनोहर लोहिया ने सफलतापूर्वक संसद में उठाया था, वे डॉ. वैदिक कोई चार दशकों के बाद उसी संसद में हो रही अपनी आलोचना के बाद क्या अपने तेवरों को यमुना में तिरोहित कर देंगे? वे पत्रकारिता करना बंद कर देंगे या फिर राजनीति करना? डॉ. वैदिक ने ‘गलती’ जरूर की है, पर देश के हितों के प्रति कोई ‘अपराध’ नहीं किया है। हिंदी की पताका हाथ में लिए दस-बारह साल की उम्र के वैदिक जब इंदौर से पंजाब की जेल काटने के लिए रवाना हुए थे, तब उस क्षण के गवाह लोग इंदौर नगर में आज भी मौजूद हैं। सरकार में अगर डॉ. वैदिक का बचाव करने का साहस नहीं है तो फिर उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजने की हिम्मत दिखानी चाहिए। समूचे घटनाक्रम का कुछ संदेश तो भारत और पाकिस्तान की जनता तक पहुंचना ही चाहिए।