लगना भी चाहिए कि राजा पकड़ाया है

२ फरवरी २०११

राजा की गिरफ्तारी बहुत जरूरी थी। प्रजा की बेचैनी सडक़ों पर अंगड़ाइयां लेने को मचल रही थी। दुनिया भर के भ्रष्ट राजाओं पर इस समय मुसीबतों के पहाड़ टूटे पड़ रहे हैं। यह मानना बचपना होगा कि तमिल फिल्मों के कथानायक और मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि की इजाजत के बगैर सरकार ने राजा को सीबीआई की हिरासत में देनेे का इशारा कर दिया होगा। दांव पर इस समय तमिलनाडु में द्रमुक की हुकूमत और केंद्र में यूपीए सरकार का भविष्य लगा हुआ है। प्रधानमंत्री अगर यही हिम्मत काफी पहले दिखा देते तो दूरसंचार घोटाले की कहानी इतने बड़े धारावाहिक में बदलती ही नहीं। पर हिम्मत दिखाने के लिए भी हिम्मत की जरूरत पड़ती है। फिर भी दाद दी जा सकती है कि सरकार ने बरैया के छत्ते में जानते-बूझते भी हाथ डालने की बहादुरी दिखाई है। पर राजा की गिरफ्तारी अगर तमिलनाडु और अन्य राज्यों में अगले महीनों में होने वाले विधानसभा चुनावों के परिणामों को प्रभावित करने और दूरसंचार घोटाले की जांच को लेकर विपक्ष की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की मांग को कमजोर करने के इरादे से ही हुई है तो फिर जनता का ऊंट किस करवट बैठेगा कुछ भी कहा नहीं जा सकता। पर सरकार के इरादों पर इसलिए शक नहीं किया जाना चाहिए कि जिस राजा की पीठ कुछ ही दिनों पहले प्रधानमंत्री ने थपथपाई थी और जिस पूर्व दूरसंचार मंत्री को कपिल सिब्बल ने क्लीन चिट देते हुए घोटाले से संबंधित कैग की रिपोर्ट को सार्वजनिक रूप से खारिज कर दिया था, उसकी ही गिरफ्तारी का फैसला लेने में भी यूपीए में कोई आंसू नहीं बहाए गए। राजनीति में सबकुछ संभव है। वैसे यह साफ होना बाकी है कि राजा को किन आरोपों के तहत गिरफ्तार किया गया है। सीबीआई द्वारा आरोप पत्र दाखिल किए जाने के पहले यह स्पष्ट नहीं होगा। इसमें दिन भी लग सकते हैं और महीने भी। तब तक यमुना और कावेरी में काफी पानी बह चुकेगा। पर राजा के खिलाफ सीबीआई की कार्रवाई से सरकार के सरदर्द में कोई ज्यादा फर्क पड़ेगा इसमें शक है। राजा की गिरफ्तारी इस बात की स्वीकारोक्ति तो है ही कि 2-जी स्पेक्ट्रम लाइसेंसों के वितरण में घोटाला हुआ है। विपक्ष के लिए हाल-फिलहाल तो इतना ही काफी है। विपक्ष अब घोटाले से लाभ लेने वाली कंपनियों के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग कर सकता है। राडिया टेप में उजागर हुए विवरण के आधार पर कार्पोरेट क्षेत्र के उन ताकतवर लोगों के खिलाफ भी जांच प्रारंभ करने की मांग भी उठ सकती है जो कथित रूप से सरकार के फैसलों को प्रभावित करने के काम में लगे हुए थे। पर भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने के दावों के साथ एक पारदर्शी प्रशासन देने के अपने वादे पर सरकार अगर कायम रहती है तो जनता निश्चित ही उसका स्वागत करेगी। सरकार और जनता दोनों को पता है कि हाल के महीनों में उजागर हुए किन-किन घोटालों में ठोस कार्रवाई अपेक्षित है। जनता के लिए कार्रवाई का मतलब केवल इतना है कि पकड़े जाने वाले एक लम्बे समय के लिए सीखचों के इतने पीछे कर दिए जाएं कि राजनीति में उनके चेहरे फिर कभी नहीं दिखाई दें।

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