[dc]अ[/dc]ण्णा हजारे तेज-तर्रार ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहते हैं। कि ममता स्वयं भी प्रधानमंत्री पद पर काबिज होने की मंशा रखती हैं, ऐसा अण्णा ने जाहिर कर दिया है। प्रधानमंत्री पद के लिए भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को अब जयललिता के अलावा ममता बनर्जी का भी समर्थन प्राप्त नहीं होगा। तृणमूल कांग्रेस की नेता की ‘सादगी’ के प्रति उमड़ी अण्णा की ममता को कांग्रेस की रणनीति का ही हिस्सा मानना चाहिए कि मोदी को किसी भी कीमत पर दूसरे दलों का समर्थन प्राप्त नहीं हो। जयललिता, वामदलों के साथ पहले ही समझौता कर चुकी हैं। नरेंद्र मोदी, मुलायम सिंह, जयललिता, मायावती और नीतीश कुमार के बाद अब 7 रेसकोर्स रोड की दौड़ में ममता का नाम भी जुड़ गया है। पश्चिम बंगाल की कुल 42 में से 19 सीटें वर्तमान में ममता के पास हैं और इनमें आगे इजाफा ही होना है। भाजपा के पास पश्चिम बंगाल में बस एक सीट है। सत्ता की राजनीति को लतियाने वाले अण्णा की प्रधानमंत्री पद पर ममता की स्थापना के खेल में इतनी रुचि पैदा होने का श्रेय अरविंद केजरीवाल को देना चाहिए। अरविंद ने जब दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था, तब अण्णा ने कहा था कि उन्हें अपने पद पर बने रहना था। अण्णा अब कह रहे हैं कि अरविंद सत्ता चाहते हैं। अब होगा यह कि ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ के ये दोनों योद्धा अलग-अलग दिशाओं में तो काम करेंगे, पर दोनों का उद्देश्य एक ही होगा कि भाजपा को सत्ता में नहीं आने दिया जाए। कांग्रेस ने दिल्ली में भाजपा को रोकने के काम में आम आदमी पार्टी का उपयोग किया। केंद्र के मामले में कांग्रेस ममता का प्रयोग करना चाहती है। कांग्रेस इस काम में चेले के बजाय गुरु का उपयोग करना चाहती है। कांग्रेस ने लोकपाल विधेयक को पारित करके अण्णा को खुश कर दिया था। अरविंद के जनलोकपाल में न तो कांग्रेस ने रुचि दिखाई और न ही अण्णा की कोई रुचि है। अण्णा अब दिल्ली को अपनी रालेगण सिद्धि बनाना चाहेंगे और उनके कमरे में झाडू तृणमूल के सेवक लगाएंगे।
[dc]कां[/dc]ग्रेस का मानना हो सकता है कि नरेंद्र मोदी के विरोध में अगर गैर-भाजपाई दलों की कोई सरकार बनानी हो तो ममता की स्वीकार्यता सर्वाधिक हो सकती है। अरविंद केजरीवाल द्वारा गिनाए गए भ्रष्ट लोगों की सूची में भी तृणमूल कांग्रेस से किसी का नाम नहीं है। उत्तर प्रदेश और बिहार में नरेंद्र मोदी अगर माया, मुलायम और नीतीश सभी के कद छोटे कर देते हैं तो सीटों की गिनती में भाजपा और कांग्रेस के बाद ममता तीसरे स्थान पर भी आ सकती हैं। ममता वैसे भी यूपीए सरकार में भागीदारी निभा चुकी हैं। राष्ट्रपति चुनावों के दौरान मुलायम सिंह ने ममता को नाराज कर दिया था, पर वह नाराजगी नई राजनीतिक मजबूरियों के चलते खत्म होते देर नहीं लगेगी। मुलायम जानते हैं कि मोदी की सरकार अगर बन गई तो पहला निशाना लखनऊ रहेगा। अत: अण्णा की विनम्र छवि और सादगी पर भी अब उतनी ही नजरें टिकी रहेंगी, जितनी कि मोदी पर। निश्चित ही, नरेंद्र मोदी के लिए संघर्ष बढ़ता जा रहा है। अण्णा हजारे के ममता-प्रेम के बाद अब किरण बेदी के नए ट्वीट की प्रतीक्षा की जानी चाहिए।