[dc]एन.[/dc]श्रीनिवासन को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष पद पर बने रहने देने या बर्खास्त किए जाने को लेकर क्रिकेट और राजनीति के दिग्गजों द्वारा फैलाई जा रही गंदगी ने छत्तीसगढ़ में नक्सलियों द्वारा किए गए नरसंहार और उसमें प्रमुख कांग्रेसी नेताओं सहित निर्दोष लोगों की मौतों पर व्यक्त राष्ट्रव्यापी चिंता और प्रतिक्रिया को भी पछाड़ दिया है। ‘दामाद’ की गिरफ्तारी को मुद्दा बनाकर श्रीनिवासन से इस्तीफा वसूल करने को लेकर कांग्रेस का बंटे रहना एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। पर कांग्रेस पार्टी नक्सली हमले को लेकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को रवाना कर पूरे एपिसोड का आगामी विधानसभा चुनावों में फायदा लेने की रणनीति पर पूरी तरह से एकजुट है। इसी तरह श्रीनिवासन को पद से हटाए जाने की मांग पर भाजपा नेताओं की जुबानें मोटे तौर पर उनके तालुओं से चेंटी हुई हैं। पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को उनके पद पर बनाए रखने के मुद्दे पर पूरी पार्टी डॉ. रमन सिंह के पीछे खड़ी है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांगकर डॉ. मनमोहन सिंह की मसखरी करने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री और गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेंद्र मोदी ने क्रिकेट की चालू महाभारत पर अपना कोई सारगर्भित बयान अब तक जारी नहीं किया है। क्रिकेट में स्पॉट फिक्सिंग के षड्यंत्र का भंडाफोड़ होने के कोई दो सप्ताह बाद और गुरुनाथ मयप्पन की गिरफ्तारी के एक सप्ताह बाद भाजपा नेताओं ने बुदबुदाना शुरू किया है कि एन. श्रीनिवासन को अपने पद से हट जाना चाहिए। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर संसद ठप कर देने वाली विपक्ष की इस सबसे बड़ी पार्टी के लिए इतनी मुंह-बचाई जरूरत से ज्यादा जरूरी हो गई थी
[dc]दे[/dc]श की जनता को संदेश पहुंच रहा है कि ‘बेशर्मी’ के मुद्दे पर क्रिकेट जैसे शानदार खेल से जुड़े पदाधिकारियों और दलगत राजनीति करने वाले नेताओं के बीच ज्यादा फर्क नहीं रह गया है। ऐसा इसलिए कि राजनीति और क्रिकेट दोनों में ही स्पॉट फिक्सिंग जमकर चल रही है। राजनीति में भी क्रिकेट की तर्ज पर सिलेक्शन होकर टीमें बन रही हैं, चुनावी मैदानों में फील्डिंग बिछाई जा रही है और बैटिंग-बॉलिंग के क्रम तय हो रहे हैं। उधर क्रिकेट की कमान भी राजनेताओं के हाथों में है और वे उसमें भी राजनीति चला रहे हैं। शरद पवार की जितनी रुचि सरकारों को बनाने-गिराने में है, उतनी ही एन. श्रीनिवासन को उनके पद से हटाने को लेकर भी है।
[dc]रा[/dc]जनीति और क्रिकेट दोनों ही जनता से जुड़े हैं। दोनों में ही धन की बरसात हो रही है। दोनों ही कभी सूखे के शिकार नहीं होते। राजनीति में सीटों की नीलामी होती है और क्रिकेट में खिलाड़ियों की। नोटों की गड्डियों के दम पर सांसदों की खरीदी-बिक्री के खेल कैसे चलते हैं और संसद में सरकारें कैसे गिराई और बचाई जाती हैं, इसके कई दृश्य देश की जनता टेलीविजन के पर्दों पर देख चुकी है। श्रीसंत और अन्य क्रिकेटर भी खेल के मैदान पर इसी तरह से देश की सेवा कर रहे हैं। देश के कई नामी-गिरामी और रिकॉर्डधारी पूर्व खिलाड़ी इसी तरह के आरोपों में मैदानों से चलता किए जाने के बाद या तो सफलतापूर्वक संसद में राजनीति कर रहे हैं या फिर उन्हें टीवी चैनलों पर क्रिकेट मैचों की समीक्षा करते हुए ढूंढ़ा जा सकता है।
[dc]रा[/dc]जनीतिक जुगलबंदी का हाल यह है कि स्पॉट फिक्सिंग और भ्रष्टाचार के आरोप आईपीएल के मैचों पर लग रहे हैं और आईपीएल के कमिश्नर राजीव शुक्ला सलाह एन. श्रीनिवासन को दे रहे हैं कि उन्हें अपने को बीसीसीआई अध्यक्ष पद से अलग कर लेना चाहिए। राजीव शुक्ला से इस्तीफा लपकने की मांग कोई चोरी-छुपे भी नहीं कर रहा है। राजीव शुक्ला भी अरुण जेटली से सलाह-मशविरा करने के बाद ही अपना मुंह खोलते हैं कि श्रीनिवासन को अपने पद से हट जाना चाहिए।
[dc]क्रि[/dc]केट के मैदान पर पहुंचते ही कांग्रेस और भाजपा के बीच सारे मतभेद समाप्त हो जाते हैं और दोनों दलों के नेता ‘खेल भावना’ से काम करते हैं। देश के बाकी खेल संगठनों में भी ऐसी ही खेल भावना से काम चल रहा है। बीसीसीआई को ‘सूचना के अधिकार’ के दायरे से बाहर रखना सभी के हित में माना जाता है। सरकार भी इस मामले में उपलब्धि का कोई दावा नहीं करती। क्रिकेट में स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी के समूचे षड्यंत्र को जड़मूल से नेस्तनाबूद करने के लिए बीसीसीआई और सरकार सीबीआई जांच के लिए क्यों तैयार नहीं हो रही है, पूछा जा सकता है।
[dc]स[/dc]रकार शायद मानकर चल रही है कि जनता को सभी अपराधियों के नाम और पते पहले से मालूम हैं। श्रीनिवासन की कंपनी इंडिया सीमेंट के वाइस प्रेसिडेंट महेंद्र सिंह धोनी देसी पत्रकारों के सवालों के जवाब देने के बजाय मुस्कराते रहते हैं, पर चैंपियंस ट्रॉफी के लिए भारतीय टीम के कप्तान के रूप में इंग्लैंड की जमीन पर पैर रखते ही अपनी खामोशी तोड़ देते हैं। वे कहते हैं कि स्पॉट फिक्सिंग पर समय आने पर खुलकर कहेंगे। हम जानते हैं कि वह समय कभी भी नहीं आने वाला है।
[dc]एन.[/dc] श्रीनिवासन अगर इस्तीफा नहीं देने पर अड़े हुए हैं तो इसका कारण उनका यह यकीन होना चाहिए कि बीसीसीआई की न्यायिक जांच के बाद सभी लोग बाइज्जत बरी हो जाएंगे। किसी को भी कोई सजा नहीं मिलेगी। दामाद मयप्पन को भी नहीं। राजनीति और क्रिकेट में कोई भी ‘संत’ नहीं होता। सभी ‘श्री’संत होते हैं!