बुच साहब की अनुपस्थिति लंबे अरसे तक खलेगी

[dc]मध्‍य प्रदेश[/dc] की राजधानी भोपाल के अरेरा कॉलोनी स्थित हरियाली से आच्छादित उस बंगले पर अब वैसी चहल-पहल नहीं रहने वाली है और न ही वैसी कोई कड़क आवाज़ ही गूंजने वाली है, जो महेश नीलकंठ बुच नाम की एक असाधारण शख्सियत की उपस्थिति में बनी रहती थी। आमतौर पर नौकरशाहों के शहर के तौर पर अपनी पहचान रखने वाले भोपाल शहर में रहने वाले एक सेवानिवृत्‍त नौकरशाह के इस तरह चुपचाप चले जाने से प्रदेश राजधानी की राजनीति, पत्रकारिता, सामाजिक और स्वयंसेवी संस्थाएं सभी एकसाथ सूनी हो जाएंगी, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।
[dc]महेश[/dc] भाई या बुच साहब, जैसा कि उन्हें सब लोग पुकारते थे, चाहे वे उनसे उम्र में कितने भी छोटे हों, उस भोपाल के निर्माता और संरक्षक थे, जैसा कि ख़ूबसूरत शहर आज नज़र आता है। मध्य प्रदेश में ऐसा कोई दूसरा शहर नहीं है। और इसका प्रमुख कारण यह था कि एक कुशल नगर नियोजक के रूप में वे सिद्धांतों से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करते थे। यही कारण था कि शासन में उनकी कभी किसी से ज्यादा नहीं बनी। इसी के चलते वर्ष 1984 में उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। पर इसके बावजूद पिछले तीस वर्षों के दौरान अपने नियमित लेखन, स्‍वतंत्र विचारों और पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी स्वयंसेवी संस्थाओं के जरिए वे हमेशा चर्चाओं में बने रहे। अपनी अप्रतिम सेवाओं के लिए पद्मभूषण के अलंकरण से सम्मानित महेश भाई का विकास, धर्म, राजनीति और आर्थिक नीतियों को लेकर अपना स्‍वतंत्र नज़रिया था। उनके इस नज़रिए को अनुदारवादियों की लगातार बढ़ती और मज़बूत होती जमातें पसंद नहीं करती थीं। बुच साहब भी इसे समझते थे।
[dc]शहरी[/dc] विकास को लेकर बुच साहब के अपने विचार थे, जो कि उनके वर्षों के अनुभवों के ख़ज़ाने से निकले थे। बुच साहब वर्ष 1971 से नगर निवेश से जुड़े हुए थे तथा राष्ट्रीय शहरीकरण आयोग के उपाध्यक्ष भी रह चुके थे। अत: जब केंद्र सरकार ने घोषणा की कि देशभर में सौ स्मार्ट सिटीज़ अर्थात अत्याधुनिक नगरों का विकास किया जाएगा तो उन्होंने शहरी विकास मंत्रालय के अधिकारियों के समक्ष तुरंत कई सवाल खड़े कर दिए। बुच साहब ने पूछा कि उन्हें स्‍मार्ट सिटी की परिभाषा बताई जाए। उनका विकास कैसे होगा, कौन लोग लाभान्वित होंगे और योजना के लिए धनराशि कहां से आएगी, यह भी बताया जाए। निश्चित ही, बुच साहब को उनके सवालों का जवाब नहीं मिला। आज समूची योजना किस स्थिति में है, कुछ पता नहीं।
[dc]केवल[/dc] शहरी विकास ही ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसमें बुच साहब का दख़ल था। सभी विषयों को लेकर उनका अध्‍ययन काफ़ी गंभीर रहता था। मसलन, जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आह्वान किया कि सभी हिंदुओं को एक हो जाना चाहिए और कि यदि हिन्‍दू एक हुए तो भारत सुरक्षित रहेगा तो बुच साहब ने अपनी प्रतिक्रिया अलग तरीक़े से व्यक्‍त की। उन्होंने पूछा कि क्या देश के प्रति वफ़ादारी में मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी एक नहीं हैं? वर्ष 1971 में सेनाध्यक्ष पारसी थे। सेना की पूर्वी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जमील मेहमूद थे, जिनकी यदि एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु नहीं हुई होती, तो वे देश के सेनाध्यक्ष बनते। उनका मज़हब इस्लाम था। बुच साहब का मानना था कि भारत में बहुत विविधता है और भारत मज़बूत है। ऐसा इस कारण नहीं है कि यह हिंदुत्व का देश है, बल्कि इस कारण है कि देश में विविधता में एकता है। निश्चित ही एक विद्वान, साहसी और ईमानदार व्यक्तित्व के रूप में बुच साहब की अनुपस्थिति एक लंबे अरसे तक खलने वाली है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *