बापू और मोदी के सपनों के बीच का फर्क

[dc]गु[/dc]जरात के मुख्यमंत्री ने भारतीय जनता पार्टी के लाखों कार्यकर्ताओं को जानकारी दी है कि महात्मा गांधी का सपना देश से कांग्रेस को खत्म करना था जो कि पूरा नहीं हो सका। अत: गुजरात के मुख्यमंत्री ने भोपाल में संकल्प दिलवाया कि ‘कांग्रेस-मुक्त हिंदुस्तान’ का महात्मा गांधी का वह अधूरा सपना अब भाजपा कार्यकर्ता पूरा करेंगे। हकीकत में गांधीजी का मानना था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही कांग्रेस का वह उद्देश्य पूरा हो गया है जिसके लिए 28 दिसंबर 1885 को संगठन की स्थापना हुई थी। गांधीजी ने सलाह दी थी कि अब कांग्रेस को लोकसेवक संघ में परिवर्तित कर देना चाहिए। कांग्रेस में चूंकि अपने समझदार नेताओं की सलाहें मानने की परंपरा नहीं है, गांधीजी की सलाह भी नहीं मानी गई और आजादी के 66 वर्षों के बाद भी एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में वह कायम है। बापू के प्रदेश के मुख्यमंत्री अब भाजपा कार्यकर्ताओं को सलाह दे रहे हैं कि राष्ट्रपिता के अधूरे सपने को उन्हें पूरा करना है। शिवराज सिंह चौहान की राजधानी में पहुंचकर नरेंद्र मोदी ने वही किया जिसके लिए वे जाने जाते हैं या लालकृष्ण आडवाणी सहित उनकी ही पार्टी के दूसरे ‘बापू’ उनसे खौफ खाते हैं। जन-समर्थन की मदद और मतदान के जरिए केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी को अपदस्थ करना एक बात है और ‘कांग्रेस-मुक्त हिंदुस्तान’ की स्थापना का सपना स्वयं देखना और अपने लाखों कार्यकर्ताओं को भी दिखाना और साथ ही उसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अधूरे सपने को पूरा करने का नाम देना, एक अलग उपक्रम है। दोनों ही उद्देश्यों की प्राप्ति के रास्ते अलग-अलग हैं। एक रास्ता गांधीजी के शब्दों में कहें तो लोकशाही को मजबूत करता है और दूसरा तानाशाही को। लोकतांत्रिक तानाशाही जैसे प्रयोग का सीमित अनुभव देश ने आपातकाल के दौरान किया था। उस तानाशाही की अगुवाई श्रीमती इंदिरा गांधी ने की थी जिसका कि जिक्र नरेंद्र मोदी ने भी भोपाल के अपने भाषण में किया। आपातकाल के खिलाफ संघर्ष में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हजारों नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अपनी गिरफ्तारियां दी थीं। कांग्रेस को मूल से समाप्त करने का नरेंद्र मोदी का संकल्प इसलिए खतरों से भरा है कि इस तरह की विचारधाराएं ही कालांतर में आपातकालीन परिस्थितियां पैदा करती हैं। कांग्रेस के रूप में मौजूद एक सशक्त या कमजोर राजनीतिक विकल्प को नेस्तनाबूद करने की मांग का अर्थ है- देश से विपक्ष या विरोध की राजनीति को ही समाप्त कर देना। कांग्रेस के कुशासन का दंड यह नहीं हो सकता कि एक राजनीतिक दल के रूप में भी उसे खत्म कर दिया जाए। एक मजबूत विपक्ष के रूप में कांग्रेस की जरूरत ही मोदी के प्रति यह विश्वास मजबूत करेगी कि एक ‘प्रधानमंत्री’ के रूप में वे भारतीय जनता पार्टी के भीतर भी आंतरिक विपक्ष की कोई गुंजाइश कायम रहने देंगे। गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में मोदी के काम करने की स्टाइल को लेकर राजनीतिक दलों और नौकरशाही दोनों में यह भय सर्वव्यापी है कि उन्हें किसी भी तरह का विपक्ष और विरोध बर्दाश्त नहीं है। देश को कांग्रेस-मुक्त करने की मांग को उनकी इसी कार्यशैली के साथ अगर जोड़कर देखा जाए तो आश्चर्य नहीं। नरेंद्र दामोदर दास मोदी और मोहनदास करमचंद गांधी के अधूरे सपनों में केवल एक ही चीज कॉमन है कि दोनों की जन्मभूमि गुजरात है, पर वडनगर (मेहसाणा, उत्तर गुजरात) और पोरबंदर (सौराष्ट्र) के बीच भौगोलिक दूरी सवा चार सौ किलोमीटर की है और दोनों के बीच पारंपरिक भिन्न्ताएं भी हैं। वैसे मोदी के जन्मस्थान वडनगर की ख्याति ‘चमत्कार नगर’ के रूप में भी है।

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