'फतवा', मोदी की मदद में तो नहीं!

[dc]दि[/dc]ल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने कांग्रेस के हक में ‘फतवा’ जारी कर दिया है। कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने के लिए मुसलमानों को प्रेरित करने को इमाम ‘फतवा’ करार देने से इनकार करते हैं। वे इसे अपनी ‘राय’ जाहिर करना बताते हैं। इमाम की ‘अपील’ से कांग्रेस का एक बड़ा काम पूरा हो गया है। काम की शुरुआत उनके और श्रीमती सोनिया गांधी के बीच उस बहुचर्चित मुलाकात से हुई थी, जिसमें कहा गया था कि ‘धर्मनिरपेक्ष-मुस्लिमों’ का वोट बंटना नहीं चाहिए। मुलाकात की बुनियाद इमरान मसूद ने सहारनपुर में पहले ही रख दी थी। इमाम के कहे का देश के मुस्लिमों पर कितना असर होने वाला है, यह तो 16 मई को ही पता चलेगा, पर कांग्रेस ने इतना जरूर साफ कर दिया है कि नरेंद्र मोदी अगर सत्ता में आते हैं तो वह उन्हें उस ‘धर्मनिरपेक्षता’ के रास्ते पर कतई नहीं चलने देगी, जिस पर कि वे चलते हुए दिखाई पड़ना चाहते हैं। कांग्रेस के काम में इमाम भी साथ देने को तैयार हो गए हैं। कांग्रेस के निशाने पर इस समय उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल है। इमाम की ‘अपील’ ने यह भी संकेत दे दिया है कि चुनावों के बाद ममता बनर्जी कांग्रेस का साथ देने वाली हैं और मायावती एनडीए में जाने वाली हैं। उत्तर प्रदेश की अस्सी सीटों के सिलसिले में इमाम की अपील का मतलब यही है कि वहां के लगभग बीस प्रतिशत मुसलमान अपना वोट न तो मुलायम को दें और न ही मायावती को। इसी प्रकार बिहार के मुस्लिमों के लिए भी इमाम का यही संदेश है कि वे वहां लालू यादव की पार्टी को वोट दें। पश्चिम बंगाल में ममता की पार्टी को वोट दिया जाना है। कांग्रेस जो काम स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पैंसठ से अधिक वर्षों में ‘सार्वजनिक’ रूप से नहीं कर पाई, वह 4 अप्रैल 2014 को पूरा हो गया। कांग्रेस ने सत्ता के लिए सीमाओं के बाद देश की आत्मा का भी विभाजन संपन्न् करवा दिया। सोनिया गांधी और इमाम का सम्मिलित संदेश यही माना जा सकता है कि ‘धर्मनिरपेक्ष’ हिंदू चाहें तो अपना वोट मोदी की पार्टी को दे दें, ‘धर्मनिरपेक्ष’ मुस्लिम तो कांग्रेस के साथ ही रहेंगे। बाबरी मस्जिद को लेकर किए गए स्टिंग ऑपरेशन के वीडियो के जारी होने को इमाम की ‘अपील’ के समय के साथ भी जोड़कर देखा जा सकता है। इस सुलभ ‘संयोग’ से अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2014 की लड़ाई कांग्रेस के लिए इतनी बड़ी बन गई है कि वह अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किसी भी सीमा तक जा सकती है। कांग्रेस पार्टी, ‘धर्मनिरपेक्ष हिंदुओं’ का वोट तो बंटने देना चाहती है, पर ‘धर्मनिरपेक्ष मुस्लिमों’ का नहीं।
[dc]कां[/dc]ग्रेस अगर अपनी ‘ध्रुवीकरण’ योजना में सफल नहीं हो पाती है तो चुनावों के बाद देश की जनता का वह अपने किस चेहरे के साथ सामना करने की तैयारी रखती है, यह भी साफ होना चाहिए। हकीकत तो यह है कि इमाम बुखारी की घोषणा ने कांग्रेस के प्रति आम जनता के बीच पैदा होती सहानुभूति की बची हुई लहर को भी नेस्तनाबूद कर दिया है। यह भी माना जा सकता है कि कांग्रेस का पूरा ‘गेमप्लान’ वास्तव में नरेंद्र मोदी की सीटें बढ़वाने के लिए ही तैयार करवाया गया था। इमाम के ‘फतवे’ के सही जवाब के लिए देश के मुसलमानों की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा की जा सकती है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *