प्रियंका को भी गुस्सा आता है!

[dc]प्रि[/dc]यंका गांधी का अपने आपको ‘आहत’ महसूस करना कांग्रेस के लिए संकट में राहत के सामान की तरह उपस्थित हुआ है। भारत की राजनीति अपनी बहुत सारी प्रेरणाएं (और चालें भी) महाभारत की कथाओं से प्राप्त करती है। पात्रों का पहले ‘आहत’ होना और फिर सत्य की रक्षा में प्रतिशोध की भावना के साथ कुरुक्षेत्र में उतर जाना ही महाभारत के मूल में है। अमेरिकी अखबार ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ की रॉबर्ट वाड्रा पर खबर कि प्रियंका के दसवीं पास पति किस तरह से एक लाख के दम पर लगभग सवा तीन सौ करोड़ की संपत्ति के मालिक बन गए, अगर मतदान के पहले चरण के पूर्व हाजिर हो जाती तो ताजा लोकसभा चुनाव के तेवर ही अब तक बदल जाते। पर अमेरिका में सारे काम घड़ी के कांटे और कैलेंडर की तारीख देखकर ही किए जाते हैं। अत: माना जा सकता है कि ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ की खबर के फूटने और उसे लेकर रॉबर्ट वाड्रा पर हमले होने का वक्त भी पहले से निर्धारित था। किसी का इंकार नहीं कि अमेरिका की भारत के चुनाव परिणामों में उसके अपने हितों के मुताबिक काफी रुचि है। वाड्रा की जमीनों को लेकर जब आईएएस अफसर अशोक खेमका अकेले ही लड़ाई लड़ रहे थे और हरियाणा की कांग्रेसी सरकार उन्हें हर तरह से लगातार अपमानित कर रही थी, तब खेमका का साथ केजरीवाल के अलावा किसी अन्य ने नहीं दिया था और न ही ‘राष्ट्र की संपत्ति’ का हिसाब भी इतनी ऊंची आवाजों में मांगा गया था। आज केजरीवाल वाड्रा मामले में चुप्पी साधे हुए हैं और भाजपा शोर मचा रही है। कांग्रेस ‘पार्टी’ ने भी तब वाड्रा को एक ‘प्राइवेट सिटीजन’ करार देकर अपना पल्ला झाड़ लिया था। पर अब प्रियंका के मुंह से यह संकल्प जाहिर होते ही कि ”जितना जलील करेंगे, उतनी ही दृढ़ता से लडूंगी” कांग्रेस में जैसे जान आ गई। पार्टी नेताओं को अचानक लगने लगा कि अपमान रॉबर्ट वाड्रा का नहीं, बल्कि पूरी कांग्रेस का हो रहा है। उन्हें अब प्रतीक्षा है कि प्रियंका अपने पति और परिवार पर हो रहे हमलों के जवाब में पार्टी को बचाने में जुट जाएंगी और रायबरेली तथा अमेठी से बाहर भी निकलने का फैसला कर लेंगी। रायबरेली संसदीय क्षेत्र में मंगलवार को सभाओं को संबोधित करते हुए प्रियंका कई बार काफी भावुक हो गईं और उन्होंने अपनी दादी इंदिरा गांधी के संघर्ष का हवाला भी दिया। उन्होंने कहा कि उनके परिवार पर राजनीतिक हमले हो रहे हैं। चुनाव परिणामों को लेकर निराशा में डूबते जा रहे कांग्रेस के नेता निश्चित ही चाहेंगे कि भाजपा के हमले इसी तरह से जारी रहें और प्रियंका ने जो शुरुआत की है, उसे वे किसी ‘लॉजिकल कन्क्लूजन’ पर भी ले जाएं। खेल में वैसे भी अभी काफी जान बाकी है। पांच चरणों में अभी केवल दो सौ बत्तीस सीटों पर मतदान हुआ है। चार चरणों में तीन सौ ग्यारह सीटों के लिए वोट पड़ना बाकी है। जहां वोट पड़ने हैं, वे महत्वपूर्ण राज्य हैं और उनमें उत्तर प्रदेश व बिहार भी शामिल हैं। ये ही तीन सौ से ज्यादा सीटें 16 मई को जाहिर होने वाले परिणामों के जरिए बनने वाली सरकार का भविष्य भी तय करेंगी। अत: देखना दिलचस्प रहेगा कि प्रियंका ने जिस दृढ़ता के साथ ‘राजनीतिक हमलों’ का मुकाबला करने का संकल्प व्यक्त किया है, उस पर वे अपनी पार्टी की उम्मीदों के मुताबिक अंत तक टिकी रहती हैं या नहीं। अगर ऐसा हो जाता है तो फिर समूची लड़ाई अब मोदी विरुद्ध प्रियंका गांधी में बदल जाएगी।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *