२५ अगस्त २०११
अन्ना जीत गए हैं। वे हजारों लोग जो दिल्ली के रामलीला मैदान में प्रत्यक्ष उपस्थित हैं और वे करोड़ों अन्य जो देश के अलग-अलग हिस्सों और दुनियाभर में अपनी सांसें थामे हुए पल-पल के घटनाक्रम पर नजर रखे हुए हैं, अब उस अद्भुत क्षण की प्रतीक्षा में हैं जब यह घोषणा भी होगी कि अन्ना, अन्न ग्रहण करने वाले हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 64 वर्षों के उथल-पुथल भरे इतिहास के दौरान यह पहला अवसर है जब महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव रालेगण सिद्धी से निकले 74 वर्षीय फकीर ने ‘इंडिया’ का ‘भारत’ की आत्मा के साथ साक्षात्कार करा कर दिल्ली के रामलीला मैदान को ‘अगस्त क्रांति मैदान’ में परिवर्तित कर दिया। देश की संसद का वह निश्चित ही अप्रतिम क्षण रहा होगा जब स्पीकर मीरा कुमार ने अपनी कुर्सी से खड़े होकर अन्ना हजारे के बहुमूल्य जीवन के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए समूचे सदन की ओर से उनसे अपना अनशन समाप्त करने की अपील की होगी। जिस अन्ना हजारे पर संसद की अवमानना करने का आरोप लगाया गया था उसी संसद की दीवारों से उनकी प्रशस्ति के गान टकराकर सांसदों की आत्माओं को झकझोर रहेथे। और संसद के बाहर देश और दुनियाभर की जनता गवाह बन रही थी कि राजनीतिक मजबूरी के चलते अपनी रीढ़ से समझौता कर झुकी हुई सरकार किस तरह से समझाना चाह रही है कि उसकी यह मुद्रा तो भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना की लड़ाई के प्रति सम्मान है। अन्ना के बहाने पहली बार जनता को अनुभूति हुई है कि देश क्या है और उसके लिए क्या कुछ करना होगा। आंदोलन के जरिए राष्ट्र की जनता ने शायद पहली बार अपने आपको एक ईमानदार भारतीय के रूप में प्रस्तुत करने की जरूरत को इतनी शिद्दत के साथ महसूस किया होगा। देश की यह उपलब्धि डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में हासिल की गई किसी भी आर्थिक सफलता और दुनिया के लिए ईष्र्या करने वाली वार्षिक विकास दर से ज्यादा महत्वपूर्ण है। ‘भ्रष्टाचार’ के खिलाफ लड़ाई की देश की यह उपलब्धि दुनिया भर के कोनों-कोनों में बसे उन करोड़ों भारतीयों के सिर भी गर्व से ऊंचे कर देगी जो एक ‘ईमानदार’ जिंदगी जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पर स्वीकार किया जाना चाहिए कि असली लड़ाई तो वास्तव में अब शुरू हुई है। जन लोकपाल का पेश होना, पारित होना और उसका ईमानदारी के साथ क्रियान्वयन किया जाना बाकी रहेगा। लड़ाई कोई छोटी-मोटी नहीं है। एक लंबे समय तक और अलग-अलग मोर्चो पर चलने वाली है। भ्रष्टाचार से निपटने के लिए जादू की वह छड़ी देश को अवश्य प्राप्त हो ही गई है जिसका कि जिक्र अन्ना हजारे को तिहाड़ जेल में डाले जाने से केवल एक सुबह पहले लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री कर रहे थे। लड़ाई की जीत के इन क्षणों में इस सच्चाई पर भी श्रद्धांजलि व्यक्त की जा सकती है कि पूरे घटनाक्रम ने हमारे राजनीतिक ढांचे के नकली चेहरे को बेपर्दा कर दिया है जिस पर कि जनता मतदाताओं के रूप में अब तक गर्व करती आ रही थी। अन्ना के लिए अनशन करने के अवसर कभी भी खत्म नहीं होने वाले हैं। और रामलीला मैदान भी कभी खाली नहीं रहेगा।