न जाने कब
दबे पांवों
और चुपचाप
चले गए तुम
छोड़कर
मां की आंखों में
एक नदी
और कंधों पर मेरे
लगातार भारी होता जाता
एक पहाड़।
Print Media Journalist
न जाने कब
दबे पांवों
और चुपचाप
चले गए तुम
छोड़कर
मां की आंखों में
एक नदी
और कंधों पर मेरे
लगातार भारी होता जाता
एक पहाड़।