कानून मंत्री सलमान खुर्शीद को अपने कहे हुए पर पश्चाताप करने की जरूरत नहीं है। कांग्रेस पार्टी और राहुल गाँधी को लेकर उन्होंने जो कुछ भी अपने साक्षात्कार में कहा है और उसका मतलब भी अगर वही है, तो देश की जनता को उसके प्रति कोई आपत्ति नहीं है। यानि सलमान खुर्शीद अगर कहते हैं कि कांग्रेस दिशाहीन है और राहुल गाँधी को अभी अपना असली जलवा दिखाना बाकी है, तो उसमें गलत कुछ भी नहीं है।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के दौरान अपनी जुबान के मार्फत सलमान निर्वाचन आयोग से पहले पंगा लेने के बाद सफाई दे चुके हैं। कांग्रेस की दिक्कत यही है कि पार्टी अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी तो अपनी ओर से कुछ बोलते नहीं और पार्टी के जिम्मेदार मंत्री और प्रवक्ता जब भी मुँह खोलते हैं अण्णा से लेकर मुलायम सिंह और ममता बनर्जी तक फिर किसी को नहीं बख्शते और बखेड़ा खड़ा करके ही दम लेते हैं। सलमान के साक्षात्कार को ठीक से समझा जाए तो कांग्रेस की परेशानी, विरोधी दल नहीं बल्कि पार्टी के अंदर ही पनप रहा विपक्ष है, जो अपने भविष्य को लेकर चिंतित है। सलमान खुर्शीद की चिंता कि कांग्रेस पार्टी दिशाहीन है का संबंध केवल दो ही बातों के साथ हो सकता है। पहली तो यह कि चुनावी मोर्चों पर लगातार होती पराजयों और गठबंधन के सहयोगियों के साथ बढ़ती दूरियों के चलते यह आशंका कि दो साल बाद होने वाले लोकसभा मुकाबलों में कांग्रेस का सफाया हो सकता है। कांग्रेस को चूँकि सत्ता में ही बने रहने की आदत है, विपक्ष में बैठने की चर्चा भी पार्टी में दहशत का माहौल पैदा कर देती है। दूसरी चिंता राहुल गाँधी द्वारा सरकार या पार्टी का नेतृत्व संभालने में की जा रही देरी को लेकर हो सकती है। सलमान ने अपनी सफाई में यही कहा है कि ‘हम चाहते हैं वे अपनी जिम्मेदारी उठाएँ।” अमेरिकी पत्रिका ‘टाइम” जब डॉ. मनमोहनसिंह के प्रदर्शन पर सवालिया निशान उठाते हुए उन्हें ‘अंडर अचीवर” बताती है, तो उसका निशाना कांग्रेस पार्टी ही होता है। वास्तव में तो ‘अंडर अचीवर” प्रधानमंत्री को ही नहीं बल्कि उनके नेतृत्व वाली समूची सरकार को माना जाना चाहिए। इसमें गठबंधन की ‘मजबूरियाँ” भी शामिल हैं। सही पूछा जाए तो संगठन के रूप में कांग्रेस और पार्टी नेता के रूप में राहुल गाँधी के नेतृत्व की कमजोरी को ही प्रधानमंत्री च्यवनप्राश के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। इसलिए जब सलमान खुर्शीद पार्टी की मूल समस्या की जड़ अगली पीढ़ी के नेता राहुल गाँधी की तरफ से वैचारिक दिशा का प्राप्त नहीं होना बताते हैं, तो उस सच्चाई का ही बखान करते हैं, जिसका कांग्रेस की वह पीढ़ी सामना नहीं करना चाहती, जिसकी उम्र पक गई है और जो ‘जी-हुजूरी” को ही ‘मार्गदर्शन” का पर्याय मानती है।
कांग्रेस का संकट ”वर्तमान का प्रधानमंत्री” नहीं बल्कि ”भविष्य का प्रधानमंत्री” है। पार्टी के युवा नेतृत्व की बेचैनी वक्त के गुजरने और इस साल के आखिर तथा अगले साल होने वाले कई राज्यों के चुनावों से प्राप्त होने वाले परिणामों के साथ बढ़ती जाएगी। क्या पता सलमान खुर्शीद ने जो कुछ भी अपने साक्षात्कार में कहा है, वह पार्टी के उच्च स्तर पर तय की गई किसी रणनीति का ही ट्रेलर हो। मुमकिन है पार्टी में राहुल गाँधी की भूमिका को लेकर अभी तक जो सस्पेंस बना हुआ है, वह सलमान खुर्शीद के साक्षात्कार के बाद तोड़ा जाने वाला हो और कांग्रेस की ‘दिशाहीनता” समाप्त होने जा रही हो। राहुल गाँधी के लिए भूमिका तैयार करने को लेकर सलमान खुर्शीद के अतिरिक्त कोई अन्य मंत्री/नेता कांग्रेस में था भी नहीं।