हो जाती हैं समाप्त
शुरू होने से पहले ही
कई बार, यात्राएं।
टकराने लगते हैं जब आपस में
अपनी ही ऊंचाइयों से ख़ौफ़ खाते
बच गए हैं जो मुट्ठी भर पहाड़ –
जीतने के लिए जगहें
ख़ाली पड़े पन्नों में इतिहासों के।
होती हैं जब कभी गड़बड़ाहटें ऐसी
टकराने की इनकी आपस में, बादलों से
डर जाते हैं बच्चे
चली जाती है रोशनी
छा जाता है अंधेरा घना,
पहन लेते हैं कपड़े काले-काले
ढंक लेते हैं अपने मुंह पहाड़
बच्चे भी डरने लगते हैं तब
छूने से ऊंचाइयों को।